दृश्य श्यामाश्याम तुम ही हो , तृषित

हे प्राण । कब मैं तुम्हारी हो तुम्हें नित प्राण रूप प्रति क्षण अनवरत पुकारती रहूँगी । क्या प्रीति वल्लरियाँ इस पाषाण से कभी नहीं लिपटेगी । प्राणों की विस्मृति पर मिला जीवन ही तो मेरे भोगों की अवनति है । हे प्राण स्मरण रहिये भले विकट नारकीय यातनाएं हो ...पर स्मृति पटल पर नित एक ही बिम्ब - प्रतिबिम्ब - छवि हो । मेरे प्राण निधि प्रियाप्रियतम की युगल मूर्ति ही दृश्य हो ...हे युगल मूर्ति ! हे श्यामाश्याम तुम ही मेरा दर्शन -दृश्य -दृष्टि और प्रकाश बनें रहो ।

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