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Showing posts from October, 2018

शरणागति या जगत , तृषित

3वर्ष पुरानी वार्ता यह... हे नाथ ! यह शरणागति क्या होती है पता नहीँ । बिल्ली के नन्हें शिशुओं सा आप के लिये आसक्त चित् नहीँ , कि आप ही उठाओं और जहाँ लें जाना है , लें चलो । इतना प्रगा...

स्वार्थ सिद्धि कुछ भी हो , तृषित

स्वार्थ सिद्धि कुछ भी हो वह भक्ति नही होती । भले भगवन प्रकट हो जावें तप या किसी भी साधन से पर प्रकट सकामता हेतु किये गए तो भक्ति नही हुई । भक्ति में भगवान को प्रकट होने के लिये ...

जल जाइये प्रेमाग्नि में - तृषित

जल जाइये प्रेमाग्नि मे , वह ना आये तो मानना जले नहीं ख्वाब था केवल अब तक । सच में एक क्षण सच्ची पुकार सँग छटपटाते ही वह इतनी तीव्रता से आकर इतनी शीतलता देते है कि महसुस ही नही हो...

तृषित भक्त - तृषित

लोग समझते है कि मै भक्त चरित नही कहता ___  कुछ भी कहने लगूँ ,एक तृषित सामने आ जाते । मै एक ही प्रेमी को जानता हूँ , हाँ यह जिसे जाने वह यह स्वयं कर लेते । मेरी तो एक ही दुनिया है तृषित प...

मेरा पथ - इनका प्रेम । तृषित

मेरे पथ में यही अन्तर है ,कि वह मेरा प्रेम नही है । इनका प्रेम है । सच्ची बात है , हमें ना प्रेम हुआ , ना होगा और जिन्हें है ,उनसे ना छुटेगा । ना छुट सकता । प्रेम प्रकट होता है प्रेमा...

अभाव की शक्ति को समझो , तृषित

अभाव की शक्ति को समझो सखी । अभाव है कि वह आते नहीं ।  आते तो रहते नही । हम अभाव के पुंज है । वह महाभाव पर बिराजते है । इस अभाव को जानकर स्वयं को हटा लो । स्वयं से स्वयं को मुक्त कर क...

कृपा-दर्शन , तृषित

कृपा-दर्शन जीव का सम्पुर्ण बाह्य तंत्र क्रिया प्रधान है । जैसे भोजन बनाना होगा तब पाया जा सकेगा । जीव के अपने शरीर में और जगत में बहुत से कार्य स्वतः हो रहे है जैसे पलक झपकना , ...