जल जाइये प्रेमाग्नि में - तृषित
जल जाइये प्रेमाग्नि मे , वह ना आये तो मानना जले नहीं ख्वाब था केवल अब तक ।
सच में एक क्षण सच्ची पुकार सँग छटपटाते ही वह इतनी तीव्रता से आकर इतनी शीतलता देते है कि महसुस ही नही होता कि युगों से छूटे थे । एक वही अपने हो तब वही सँग भी है । हिय (दिल) मे कुछ भी ना हो बस वही । उनका अहसास जब तक ना हो ,यही मानिये कि अब तक हमने सच्चाई से चाहा ही नही । जो केवल उन्हें चाहते है ,वें ऐसे प्रेमी के ख्वाब को भी तहजीब से तह करके रखते है । उन्हें प्रेमियों से छुटना नही आता । हमें प्रेम में खुद को खोना नही आता ।
*तृषित* । जयजय श्रीश्यामाश्याम जी ।
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