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Showing posts from December, 2018

जगत यात्रा , तृषित

*जगत यात्रा* वर्तमान बाह्यजगत में चहूँ ओर भौतिकता तांडव कर रही है । हम सभी पर बहुत पर्ते (आवरण)चढ गई है । सभी आवरणों से मुक्त स्थिति पर अध्यात्म है , और मुक्त स्थिति उपरान्त अपन...

अनवरत रस दर्शन को कैसे बनावें ?? तृषित

*भजन के समय भाव में जब कोई झलक सी आती तो धक्का सा लगता ह्रदय को और नेत्र खुल जाते,  नेत्र न खुले वहां टिके रहे उसके लिए क्या करें?* ...अति प्रगाढ माधुर्यता है वहाँ ।  होगा ऐसा । भजन ल...

स्वभाव लालसा , तृषित

*स्वभाव लालसा* स्वभाव के छू जाने की लालसा रह्वे । प्राकृत जीवन में एक बार जल का गिलास छोडने से लेकर , एक समय आहार छोडने तक समस्त उपक्रम में पराभक्ति प्राप्त हो गई यह अनुभव रहता ...

सम्बन्ध , तृषित

*सम्बन्ध* अनन्त खग प्रजातियों में कितने पक्षियों का संवाद मैं समझ पाता हूँ । किसी का भी नहीं न । और कौए के परिकर समझते न उसका भी संवाद । क्या कभी किसी द्रुम बेल ने अपनी कोई आंत...