कल्पनातीत कृपा , भजन... तृषित
*भजन भी जो देता है वह किसी के भी लक्ष्य से अति उच्चतम होता है* , अर्थात भजन कागज की नाव चाहने वाले को मणियों की नाव में बैठाने का सामर्थ्य रखता है , लक्ष्य रखिये... परन्तु जो आप पावेन्गे वह लक्ष्य के बाँध को तोड कर मिलेगा ... उस ओर से जो मिलता है वह कल्पनातीत है , बस भजन बनें । भजन जो देगा वह वाँछाओं से परे है ...वाँछा भर की सिद्धि यह पथ नही करता इस पथ पर उस ओर प्यारीजू खडी है सो यह तो सोचिये ही मत की क्या होगा ???
जो भी होगा , अथवा हो ही रहा है वह हमने स्वप्न भी देखा होगा... लालसा और कृपा में कृपा सदा आगे है सो भजन साधना होते हुये भी कृपारूप है । भजन जीव या साधक की क्षमता भर नही है , उस ओर रस-प्रेम का तूफान है , उनके सरस प्रेम रूपी तुफान में हम स्वाद लेन्वें सो भजन बस दृश्य की सघनता को सघन झेलने हेतू करना है । कही ऐसा ना होन्वे कि कभी श्रीलाडिलीलाल बिल्कुल सँग खडे हो और हम मूर्त हो जावें , उनकी मधुरता को झेलने के लिये नयन खुले ही ना रह सके , सो मधुरताओं को झेलने का पात्र केवल भजन से बनेगा वरण तत्क्षण हम स्थिति हीन हो सकते है ...उस ओर की मधुरता भी कल्पनातीत है । भजन उनकी ओर की चाल है.. ..इसी विषय को सुन भी सकते है साधक में साधुता भाग 17में । *इस प्रीति पथ पर जो भी मिलेगा कल्पना से अति अधिक मिलेगा , बस बस बस भजन बनें* ___तृषित
JAI HO. JAI HO. KAISI KARUNA HAI MERI SHYAMA JU KI. ADBHUT. ADBHUT. SHRI RADHE
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