प्रश्न - सखी को विरह होता है ??? तृषित

प्रश्न - सखी को विरह होता है ???

तृषित - किसी भी प्रकार का आनन्द सेवार्थ बाधा में नही होता । कोई भी अपनी पृथक प्राप्ति की स्थिति सखी नही है । हर स्थिति युगलार्थ है । स्वार्थ हेतु स्थिति है तब तक जीव स्थिति है । विरह भी अपने हेतु है तो एक प्रकार का आनन्द है । कभी कभी भावुक का विरह इतना प्रिय होता कि सघन प्रेमास्पद के सँग को नयन मुंद कर उनके लाख चाहने पर भी ना देखकर उस वेदना को बढ़ाना ही सुख हो रहा होता है । जीव को ऐसा ही रोग है वह विस्मृति से छूटने को और अपनत्व को पीने को राजी नही है । सखी नित्य युगलार्थ सेवित है । उनके नित्य अपनत्व के नित्य स्वीकार्य में नित्य भीगी रसिली सँग स्थिति है । जब तक अपने हेतु स्थितियाँ है वह स्थिति सखी नही है ।

सहजता में सखी के भीतर अति युगल की सघन मिलित रह्वे सघन मधुरातीत मधुर वेदना है जो कि लीला होकर श्रीयुगल को और सघन मिलाते हुये विलस रही है । हियोत्सव प्रकरण पूरा सुने ।

किसी भी प्रकार का आनन्द सेवार्थ बाधा में नही होता । कोई भी अपनी पृथक प्राप्ति की स्थिति सखी नही है । हर स्थिति युगलार्थ है । स्वार्थ हेतु स्थिति है तब तक जीव स्थिति है । सखी में रति है युगलार्थ । तृषा है युगलार्थ । तृषित । जयजय श्रीश्यामाश्याम जी ।

सखी के नयनों में भरती प्रीति मधुता ही युगल सेवार्थ सुगन्धित भावना है । जिस भाँति यहाँ प्राकृत धरा पर कडवाहट की वल्लरी भी फलती-फूलती है भीतर मात्र अमृत मधुतम सरस युगलार्थ विलस-हुलस भरी निकुँज झाँकी है अर्थात् कड़वे फ़ूल-फल और कंटक नही है वेदना/तृषा में भी नित्य मधुता नहीं छुटती और हिय-पीडा की सेवा फलस्थिति में मिलन ही सघनतम  नृत्य-रागित है । प्रति भावमुद्रा मिलन की सघनता चाह रही है जिसे युगल की तनिक भी पृथकता वांछित है ऐसी कल्पना भी नही है भीतर ।

Comments

Popular posts from this blog

Ishq ke saat mukaam इश्क के 7 मुक़ाम

श्रित कमला कुच मण्डल ऐ , तृषित

श्री राधा परिचय