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Showing posts from January, 2020

तृषित ललिते , तृषित

जहाँ छलकी है शबे मुलाक़ात दिल में हमने फिर बात अपने छिपे दिल की ही की है जहाँ छलकी है वही छलकी है आँखों में ललिता उतर चली है सुना है तुमने अधूरी नाचती मेरी बातों को तो तृषित धि...

सखी मोरे प्राण मराल , तृषित

सखी मोरे प्राण मराल , चुनि चुनि रसिली शरद रसाल सखी मोरे प्राण युगल , झूमत फुलत उमगावे गुलाल सखी मोरी प्राण निधि , रीति गुढ़ रस रति बसन्त सु पुलाल सखी मोरी तृषित प्यारी , सजाई के ल...

स्थूल पदार्थ से भोग होना , तृषित

*स्थूल पदार्थ से भोग होना* जिस भाँति चक्की (दो पाटों के मध्य)के भीतर अनाज डालने पर वह उनके घर्षण से कठोर ध्वनि करती है और अनाज का चूर्ण हो जाने पर वह कठोर ध्वनि धीरे-धीरे कठोरता ...

सिद्धान्त और निकुँज स्पर्श , तृषित

निकुँज रस अनुभव हेतु सिद्धान्त क्षेत्र पर स्वयं को भी सतर्कता से चलना होगा ।  सरस् मधुर स्थितियां ही प्रकट निकुँज विलास में उत्सवित हो सकती है ।  सरसता मधुरता के निकट होने के प्रयास रह्वे तब वह स्वयं निकट होती है ।  मधुर रस और श्रृंगार रस में ही जीवन का सार सुख मिलने की लोलुप्ति होने पर अन्य से चुभन - कटुता - वैमनस्य आदि मिटने लगेंगे । यह नहीं मिटेंगे तो निकुँज नहीं प्रकट होगा । जो केवल प्रेम दे सकें वही इस मधुता को छूते है । रसिक - सन्त सर्व के प्रति करुण सरस और अपनत्व से भरे होते है कारण यह ही है कि सहज होकर ही सहजता का सहचर हुआ जा सकता है । सेवा के तृषित होना होगा सेवक होने हेतु ।  जब हमारे द्वारा निकुँज रस चर्चा निवेदित हो और सन्मुख स्थिति में सिद्धांत क्षेत्र का अभाव हो तब वह चर्चा सिद्धांत के निकट होने लगती है क्योंकि जैसे बालक अति गर्म रस नहीं पी सकते जबकि अभ्यास से पिया जा सकता है वैसे ही जिनका मधुता-शीतल रस का चिंतन नहीं वह गहन अति गहन मधुता-शीतलता आदि का सँग नहीं कर सकते थोड़ा मिश्रण कर निवेदन करनी होती । जबकि श्रीजी की स्मृति भर से हिय शीतल सुरँग शहद में भी...

विलास चोरी , तृषित

*विलास चोरी* अमृतपान कृत्य नहीं है । और प्रीति के ललित कृत्यों में जो श्रृंगार विलास रहता वह भावरस भरी चतुरता होती । जिस भाँति लोक धन के चोर लौकिक धनी का सँग चुपके से करते और स...

तृषित श्रीगीत गोविन्द प्रस्तावना

श्रीगीत गोविन्द श्रीहरिप्रिया किशोरी जू श्रीजी से झरित गीतात्मक गोविन्द स्वरूप स्वभाव है । गोविन्द वपु की संरचना में जो श्रीजी ने गाया वह गीत । गीत गोविन्द श्रीयंत्र र...

फ़कीर , तृषित

फ़क़ीर शब्द तो बहुतों को छूता है फ़क़ीर । विदेशी गलियारें भी चिखते है फ़कीरा फ़कीरा खोजते हुए । फ़क़ीर क्या है ? फ़कीर कौन हो रहा है , किस का मन लग रहा है यार फ़क़ीरी में , फिर भी वो क्यों गा रह...

प्रकट पायस , तृषित

दक्षिण भारत का अनुभव है कि श्री को खीर का भोग लगता है । यह क्षीरान्न (पायस) भोग स्वतः श्री कृपा प्रकट भोग है । क्षीरिका अति गाढ़ माधुर्य से गौधन का अधरामृत पान करने पर पिया हुआ क...

भाव दर्पण , तृषित

कुँज (भाव समूह) जब सँग सँग समभाव में भीगा होता है तब वह *उत्सव* है (उत्सव सामूहिक भजन है) युगल तृषित *** भाव प्रेम पथ पर सर्व में समत्व (सहचरी) दर्शन हेतु प्रथम सर्व में ज्येष्ठ दर्श...