तृषित श्रीगीत गोविन्द प्रस्तावना
श्रीगीत गोविन्द श्रीहरिप्रिया किशोरी जू श्रीजी से झरित गीतात्मक गोविन्द स्वरूप स्वभाव है ।
गोविन्द वपु की संरचना में जो श्रीजी ने गाया वह गीत ।
गीत गोविन्द श्रीयंत्र रूपी कलम लिखित विलास है श्री कुच मंडल हृदय मण्डल अर्थात श्रीयंत्र। श्री मण्डल उपासना है भगवती श्री सेवित होती है । मण्डल कारिणी सुरा जो मण्डल कर रही हो । षोडश कलिका की वह विजया जो अष्ट दल की सेवा में मधुभरित कमल से अंकित अर्थात श्रीयंत्र की बिन्दु अर्थात कुच मण्डल निभिय बिन्दु । परन्तु श्रीयंत्र का दूसरा बिन्दु श्रीकिशोरी का नयन बिन्दु है और श्रीयन्त्र यथादृश्य तथा अदृश्य है क्योंकि माधुर्य विलास रहित स्थल पर दो पृथक दल की पृथक भारिणी है अर्थात प्रति दल जिनके हृदय पर नवीन हृदयेश्वरी हो । श्रीयंत्र नयन से हृदय का मिलित विलास वपु श्रीगोविन्द हृदय मण्डल की बिन्दु पर विराजमान होकर अंकित कर रही है संकल्पित मधु प्रिय वपु हरे गोविन्द कृष्ण , क्योंकि हरे कृष्ण । हरित माधुर्य प्रियतम श्री महिषीणियों को भी दिखती देव , ठाकुर श्रीहरि प्रियाओं की शृंखलाएँ भी देख सकती है जिन गोविन्द स्वरूप को अर्थात स्वर्णसेवी नयन भी गोविन्द को कुन्दनों की मधुता माने जो मधुता वृन्दावन में भिन्न भिन्न श्रृंगारों से सेवित है जैसे चन्दन चर्चित प्रियतम वपु , वेणु भरित चन्दनोत्सव मनाते श्रीराधा अष्टमी की ललितप्रियाजू-नवरँगीलीप्रियाजू श्री अर्थात भूसजनी और हृदयसजनी के नयनों का विलास और भूसजनी अर्थात रेणुका बिन्दु और प्राणरस रूपी सुगन्धित शरद बिन्दु चन्द्र प्रदायिनी श्रेया अर्थात भू स्वरूप वदन भरी युगवदन प्राकट्या कुँजबिहारी रचिका ललित मधुरा दल और गुलाब को देखो सखी उसका प्रति दल ललितम होना चाहता है फूल भी रँग जाने का रसायनिक व्यसन चाहता है , रक्तपिपासित फूल सा वृन्दावन से बाहर कुरुक्षेत्र विलास रचियताओं के यहाँ अर्जुनों को दिखा सकें माधुर्य वपुता अपने गीत से ऐसी केलि श्रृंगार माला है गीत गोविन्द और ऐसा ही कुछ अति मधु स्वामी जू से अकबर ने क्षणार्द्ध ही सुना और वाह भी मिल गई सुनाई में स्वामी जू को । ( वाही नहीं लेना देना ही सहचरी है , अति निज जो कहे सौंदर्य अभाव सहज मधुतानिधि श्रीकिशोरी स्वरूप की ) वादन वाहक केलि श्रृंगार युद्ध रचियता श्रीहरिदास जू के गुलाब कुछ गुलाबी सुन्दर ललिता में भीगे स्वरूप से प्रकट चन्दन रचित पीत छटा बिखेरते गोरेलाल जू रसिक पीताम्बर देव जू की भजन सेवा स्थली की दासी निहारित पीताम्बर श्रृंगारित गोविन्द देव हरे , (बसन्तोत्सव प्राकट्योत्सव है , ऐसा ही रचनात्मक उत्सव है श्रीगीतगोविन्द)
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