तृषित ललिते , तृषित

जहाँ छलकी है शबे मुलाक़ात दिल में
हमने फिर बात अपने छिपे दिल की ही की है
जहाँ छलकी है वही छलकी है आँखों में ललिता उतर चली है
सुना है तुमने अधूरी नाचती मेरी बातों को तो

तृषित धिक्कार है तुझे प्राणदायिनी को फिर अपनी ओर प्रकट कर कहना पड़े
जिसे प्रकट्या उस जननी को भी को भी ललित केलितम कहना पड़े । श्रीललिता को दासी क्या जिह्वा से नृत्य करा कर थकावे जब उस विलास की सुगन्ध किसी को किसी पृथक कलि की नई लगी । मेरी मधुरता जहाँ छुई होगी श्रवणों में वहाँ वह है और उनकी मधुरता मेरी अधूरी रागों से भी सँग कर खेल रही है वह अधरोच्छलित ललित रँग विलास रस श्रृंगार कृपा झूमती झूमके , बेसर , अधरराग (विटिका) , कपोल कल्लोलन स्थिर गुलाबी स्पर्श विलास नयन अनुराग रंजन से नयन ललिता कैसे ललिता कहवै ।

: निभृत नित्य ललित नित्य

आपको सभी रसों में स्वामी जू की रीति मिलती है क्योंकि आप पक्षियों का घोंसला इसी तृषित वल्लरी पर है । आपको तो बादल का बिन्दु भी सागर लगेगा , मरुस्थलिय कीटवत रस ले सकते हो ।
किसी से तो प्यार करने दो
इन्हीं को तो दिल में रहने दो
श्रीललितेरसबिन्दुतृषितरजक्षारीय फैन(झाग) सुगन्ध राग ललित जिह्वा बिहरणी माधुरी

दिल्ली की बारिश प्रभात में फोन पर चला कर सुन चुकी हूँ । प्रभात में झूठे ही गाया भी था पद गौड़ का मयूरों का कौलाहल छलक गया जैसे शीतल रास में और रस रँग होकर सरस् हो गया ।कोई और रँग नहीं आया । तृषित और युगल बस ।।

दिल्ली में कल बारिश हुई । और हम तो तरस रहें एक ही ऋतु के जीवन को जीने को मरती अलि री । वहाँ एक ही अलि कई राग ऋतुओं में खेल रही होती । सब सखी सब से मिलकर ललित माधुरी रचती हिय ललिता (लाड़त्वदान)

हरे बैठी हो जो सबकी नज़र
पिये बैठी हो जो सबकी चाहते
लिए बैठी हो तेरी सलवट उसकी झुमका मेरी आलता
वह ही लाड़ जिह्वा से लेती है , गौ रस चाटकर ललित रहती है वह ही लाड़ से ललितमयुरबिहारिणीबिहारी युगल नयनन से गूँथती है
श्रीललितराधे
श्रीललितश्यामा
श्रीश्यामाश्याम ..स्वामी श्यामाकुंजबिहारी ..ललिता

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