फ़कीर , तृषित

फ़क़ीर

शब्द तो बहुतों को छूता है फ़क़ीर । विदेशी गलियारें भी चिखते है फ़कीरा फ़कीरा खोजते हुए ।
फ़क़ीर क्या है ? फ़कीर कौन हो रहा है , किस का मन लग रहा है यार फ़क़ीरी में , फिर भी वो क्यों गा रहा है मन लागो यार ...
भाग्यशाली का विलोम है भाग्यहीनता , क्या कोई उत्सवित हो सकता है भाग्यहीनता पर । हथेली में लकीरें (भाग्यरेखा)जो खोजता हो वह फ़क़ीरी के लुफ्त से दूर है । फ़क़ीरी की अपनी दुनियां है , काशी में वह फ़कीर है जो किसी दर्शन शास्त्र से खाली है ,  बोध रहित मौज भरी फ़क़ीरी । बोध का भी अपना रस है और बुद्धत्व का भी पर फ़कीर का जो रस है वह रसों के समुद्र का शेष सार है । फ़कीर का सँग हमें देता है अपनी अमीरी का एहसास । पर फ़कीर के एहसास को हम दूर खड़े देख सकते है उस फ़क़ीरी एहसास के लिये एहसासों में या ख्वाबों में भी फ़क़ीरी नहीं चाह सकते । मुझे मिलते है कुछ श्रोतागण जिनमें श्रवणीय रस का ऐश्वर्य भरा होता है और मेरा मैं बेचारा किसी फ़कीर की तू से निकला होगा जो सदा अभाग्य का रस ले रहा होता है । कहना चाहता हूं यारों से कि कहां है वो जो लग रहा हो फ़क़ीरी में । दीपक बेचने वाली की अपनी दिवाली में मिट्टी की कुटिया में कोई एक दिया जब जलता है या दीया जलने के ख्वाब में उसके हाथों से कही कोई खरीदता है तो मन ही मन उसकी फ़क़ीरी से रूठ कर रोशनी का पैमाना जा रहा होता है । कौन बेचता है मेरे मित्र ...मेरे यार अपने उजाले को । पर फ़क़ीरी उजाले से परे की मधुता है , कुछ वर्ष पूर्व जब बिजली पर्याप्त न थी तब देखी हो तुमने अतिथि आगमन पर शायद अँधेरी रातें जिन्हें रोशन करने की सारी हदें बेहद होकर अनहद हो गई हो , अर्थात मेहबूब हो और मुलाक़ात मेहमान-नवाज़ी न हो । गरीब को गरीब नवाज़ का सँग मिलता है और फ़कीर को अमीर का । अबोध शिशु को बुद्धत्व से परे जागृत-स्वप्न-सुषुप्ति से भी दिव्य तुरीय मधुता मिली रहती है , उसे बचाना होता है अपने बोध से भी । ...परन्तु कौन अपने अंश को फ़कीर करने के लिये पिता होना चाहता है ? मैंने देखा एक विदेशी फ़क़ीर भी जिनके पिता व्यापार हानि से हुई फ़क़ीरी से अपना सम्बन्ध अनुभव नहीं कर पा रहे , अनुतीर्ण को गोद में कौन लेता है यह तो ध्रुव सत्य ही बता सकता है । फ़कीर नैन भर कर बार बार अपने प्रियतम से मिलना , मिलना पर फ़कीर रहकर मिलना ... हाय वह मुलाक़ातें । खाली रहकर जो मिलता है वही बता सकता है कि वह किस क़दर वो रँग भर लौटता है । पोखर में कही होते उत्सवों में भी वो आते है कभी-कभी बिन कोई उपहार लिए उपहार होकर हृदय से लूट जाने को । काश फ़क़ीरी ना लगे किसी को , समेट सकें जज़्बात तो कम से कम । हाय री सखी , मैं तो अपने ही लूट गई ..कहाँ-कहां उड़ गई री । हाय यह गरीब नौकर (दास) कहीं और होता तो तालिमों से अमीर होता । इतना ख़ाली ख़ाली और इतनी इतनी प्रीति फिर भी हाय खाली खाली । उफ्फ , लग गई न फ़क़ीरी । हाय , लगी रहे भी यह फ़क़ीरी । हे मेरे अमीर , मुझे रखोगे न अपना अपना बस अपना फ़क़ीर ।

मत करो सँग किसी फ़क़ीर का । उसके सँग केवल कोई बेहद अमीर ही ठहरता है । और यहाँ तो बस फ़क़ीर ही फ़क़ीरी है , कहने से डरते है तो पत्थरों को महल कह रहते है । यार मेरे दिल रखना ख़्याल कि तूने अपनी ओर से केवल एक खाली झोली बनाई है , जो भरा या जो मिला या जो तेरा सब है वह तो बस दुआओं की रिश्वतों में बख्शीश (भीख) पाई है । कर ऐसा सँग जिसने भीख ना माँगी हो । रह फ़कीर अपने अमीर ख़्वाब की चौखट पर । और देख ख़्वाब भी फ़कीराना ।  फिर आएगी तुझे खुशबू किसी रसोई की असली भीनी भीनी , यमुना को छुई लहरों के नशे में इधर उधर गिरें जो टूटे सीप के भीतर के वो खोए हुए मोती खनक , छुटे हुए सागर से शंख से आती लहरों की झनक । फ़क़ीरी भरी होती है यार की अमीरी सँग । युगल तृषित । जयजय श्रीश्यामाश्याम जी ।

Comments

Popular posts from this blog

Ishq ke saat mukaam इश्क के 7 मुक़ाम

श्रित कमला कुच मण्डल ऐ , तृषित

श्री राधा परिचय