स्थिर सुख की दैन पै थिर न सकी मैन

*स्थिर सुख की दैन पै थिर न सकी मैन*

सघन युगल निकुँज रस की गहनता चाहिये तो अपनी गहरी स्थिरता स्वयं में अपेक्षित होनी ही होगी । 
लालसा हो थिर-स्थिर (मूर्त) हो रसमय सरस विलास सेवाओं की सेवामयता की । 
सरसता स्थिरता सँग ही फलित होती है सो सेविकाओं में स्थिरता और सेव्य श्रीयुगल में कोमल श्रृंगार विलासों से भरी गहन सरसताएं नित्य वर्द्धन हो । 
अधिकतम आज दर्शक समूह वत ही निकुँज लालसा है । वास्तविक सेवा में हृदय और प्राण मात्र से सचलता भी मिलित श्यामाश्याम के उत्स को अनुभव कर प्रकट होती है । और श्रीयुगल के शीतल मिलन महोत्सवों में वह मिलित शीतलता जब ही मिल पाती है जब उस मिलन रूपी शीतलता की सेवा होकर अबाध प्रीति के और सघन गहन मधुर होने की लालसा में बलैया भी देते न बने । विलसित युगल सँग हेतु मैनवत (मोम की पुतली) सखी चाहिये । मक्खी से लेकर सिंहनी तक के सम्पूर्ण वनचरों का विलास स्थिर या निजतम सँग ही प्रकट हो पाता है । सहजता भरी ललित क्रीड़ामयी प्रीति अति कोमल और विभोरित उत्स है जो कि नित्य सँकोच या लज्जा से आच्छादित रहता है । प्रकृति यौं न चाहियै चाहियै ज्यौं मैन । 
अपनी ओर से बनी सघन सेवामय स्थिरता में सहज ही शीतल पियप्यारी की शीतल भाव-अनुराग उमगन के हिलोरें हिय को सघन शीतल सेवामय सुखों सँग झूमाय रहते है । श्रीयुगल की निज प्रीति माधुरियों के रसभोग को श्रीयुगल को सहज अर्पित करने पर बहुत ही बहुत निजप्राणो से सिंचित प्रसाद प्राप्त होता है परन्तु प्रसाद का सही आस्वादक उसका प्रथम स्थिर पात्र है ।

Comments

Popular posts from this blog

Ishq ke saat mukaam इश्क के 7 मुक़ाम

श्रित कमला कुच मण्डल ऐ , तृषित

श्री राधा परिचय