प्रियाजु पद

प्रेम सुगंधी अनुपम निराली सखियों

रस पिबत पिबत सदा रहत प्यासी सखियों

रूप सलोने पर वारी वारी जाये हम सखियों

प्रेम अन्त: मिलन दर्शन कबहूं पावे सखियों

नित होवत मगन दोउ दोउन में निकुंज सखियों

देव दुर्लभ दिव्य दाह सहज सरल अनुपम परम् समायजन सखियों ... तृषित

[7:47am, 21/07/2015] सत्यजीत तृषित: श्री पदकंज सेवा

पंकज सुमन प्रिय छब देख हरषत

प्रेम मिलन नित श्रीप्रिया निरत रहत

ललित सेवत कंज पद सु रस सुहत

मधुर मुदित अरबिन्द अधरन खिलत

सिहर रही श्याम प्रेम आलिंगन पावत

नैन झपक कुमार सेवा रसमाधुरी करत

मोहन जानि पंकज स्नेह सहलाय कर धरत

रसराज श्रीपद चाकरी सखियन सु मांगत

ललित मुग्ध भई युगल प्रेम-भावरस पिबत

प्रिया मगन भई पग छुवत भंग काहे करत

भुवनपति पुनि-पुनि करबद्ध अरदास करत

मकरंद लाल पग दरस नैनन कालिन्दी झरत

ललित युगल प्रीत पावत अनुपम प्रमुदित हरषत

रसिक शिरोमणी थिर-थिर जलज कर सु छुवत

ललित परस भंद होय अरविन्द सु अरविन्द मिलत

श्री तरंग आह्लाद भीतर रोम-रोम पूरण भये नाचत

देवादिक दुर्लभ प्रीत दरस पावत ललित नैन बरसत

संग पाय कछु-कछु नैन प्रिया मुंदी मुंदी झरत

पद सेवा पाय हरषे पुलक-पुलक अधर महकत

तनिक झिझक किशोरी तनिक हरष तनिक रोवत

काहे सलोने रस रसिकेश्वर रसराज चरण छुवत

प्रियतम सुख पाय जाही विधि सु प्रिय लागत

श्याम तव सुख काज धरम इक राधिका धरत

इक होत दुई होत दुई होत श्याम श्यामा पुनि इकहिं होवत

"तृषित" मलिन युगल-दरस याचना पल-विपल रोय-रोय करत 
सत्यजीत "तृषित"
[7:47am, 21/07/2015] सत्यजीत तृषित: प्रति आखर समर्पण युगन को
कछु कछु मोरा मन नहीं मानत
[7:47am, 21/07/2015] सत्यजीत तृषित: प्रितम आवत देख मधुरा पलकन झुका शरमावे
नव युगल नव मिलन होत किशोरी नित जीया मिचलावे
[7:47am, 21/07/2015] सत्यजीत तृषित: प्रति क्षण रहत ध्यान निरन्तर
कछु कछु पूजा मोरा मन नहीं मानत
[7:47am, 21/07/2015] सत्यजीत तृषित: नित नव लीला नव नित माधुरी
नित नव श्यामा श्याम कली
नित नव कुसुम नित नव भोर
नित नव उत्स विवर्धित कीर्ति
नित नव सिंगार वस्त्र नव नित
नित नव पिय अधरन स्फुर रस
नित नव हर नित नव हरि मिलित
नित हरिका हरित नित नव प्रेम कलि
नित नव तृषा नित नव तरंगिनी
नित नव ताल-राग वाद्य वादिनि
नित नव ठुमुकत नाचत सजनी
नित नव भाव चित्र-विचित्र सखी
नित नव सुकुमार-सुकुमारी होत
नित नव रचत-राजत लीला न्यारी 
--- सत्यजीत "तृषित"

प्रितम आवत देख मधुरा पलकन झुका शरमावे
नव युगल नव मिलन होत किशोरी नित जीया मिचलावे

प्रति आखर समर्पण युगल को
कछु मोरा कछु तोरा होय मन नहीं मानत

प्रति क्षण रहत ध्यान निरन्तर
कछु कछु पूजा मोरा मन नहीं मानत

पल निमिष सर्व अर्पण हो युगल चरण
कछु काल भजन कछु काल सञ्चन मोरा मन नहीँ मानत

करत करत न परत पार ऐसो रस को का सम्भार
रोम रोम बसत ब्रजराज हिय ही बसत मोरा मन नही मानत

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