मेरी शायरियाँ
कुछ खोया हुआ फिर मिला आज ना जाने क्यु ...
अब निगाहें उस अजीब चीज को खोजती है
जो तेरी छब में डुब कर सही सलामत है
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तेरे दर पर क्या आऊं
लौटता हूं तो कहते है
मेहखाने से लौटे हो
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क़सम से जब लोग कहते है
थोडी कम पिया करो
फक़त तुम फिर बह जाते हो
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सच कहो अभी जो मिला वो गैर था
मुझे फिर क्युं लगा वो तुम थे
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तालिमें कहाँ उधड गई सारी
बडी खुशी से हम बेक़ार क्युं बैठे है
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दो व़क्त के लिये नज़रे आगोश से हटा लो मुझे
तुम्हारे होने का सबुत किताबों में खोजना है मुझे
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एक ही शौक था पन्ने पलटने का
अब बहाना हो तुझे देख रोने का
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लो कर दी राख सारी किताबें दुनियादारी की अब पकडो हाथ कितनी देर है ईज़हारी की
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सही व़क़्त बता दो कब आ रहे हो
चलो बहुत हुआ, यें ही कहो कब बुला रहे हो
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अज़ीब है मेरा ज़िस्म अज़नबी हो गया
जहाँ मैं कोई एक ख़्वाब फिर खो गया
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ग़र मेरे रोने से तेरे होठों पर हंसी हो
दर्द संग रहे ज़िन्दग़ी आंसु ही हो
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मुझसे ना मिला करो महफ़िलों में साहब
आँखों को फुरसत नहीं कहीं और तांका करे
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तेरे द़िल में मेरा आफ़ताब ना होता
मुलाक़ातों से कभी ऐतबार ना होता
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हक़ीक़त है कि बेचैनी है
बेहाली-बेक़रारी-बेखुद़ी है
फिर भी यें जरुरत सी है
ज़न्नत का ख़्वाब गर दूर करें
तो तक़लीफ गहरी हो उठती है
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साजिशें तुम करो किसी भी तरहा एक होने की
सजदे पलकों के लो आरज़ुयें है किसी में बिखरने की
*** सत्यजीत "तृषित"
कुछ पुराना है
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