सखि री काजल कटौरी लाओ

सखी री काजल कटौरी लाओ
देखो प्रियाजु संज रही है

कोई नजर ना लगे
प्रियाजु भर रही है

सखी री दृग मोरे
पलकन में छिप गये रे

तू ही बता
क्या सिंदुर कान्हा भर गये रे

मोरी दृष्टि पडे दोऊ पर
जाके काजल लगा री

दोष जो जग मिटावे
दोउन दोष तू मिटा री

नित घडी देखु
या ही छवि
प्रितम सजावे
प्रिया जु मांग प्रेम री

देख री जो हूं
देख हरषाऊ
दोउन ने कहि
ना आऊं जब तक
यू ही रहो जी
और सखी मोरे
प्राण न निकाल
मोरे लिये यूं ही
छब युगल रहे रे

लाई तू क्या
काजल कटौरी
देखु दोउन
नजर उतार री

हाय ! छिपा ले
पर्दा लगा लें
देखत कोउ
प्राण ना हारे

अहा प्रिया
अहा कंवर जी
क्या कहूं तोसे
सोहत प्रमोद जी
निरख निरख और निरखो
बैरी ही को पल ना बिसरो
देखत देखत हरि हर लो ...
सत्यजीत "तृषित"

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