फेसबुक और आध्यत्मिक लाभ - 1

फेसबुक और आध्यत्मिक लाभ - 1

फेसबुक पर व्यक्ति की प्रोफाइल है , कोई मित्र फेसबुक पर अनब्लॉक करें और जीवन में नहीँ तो भी पीड़ा होती है । क्यों ?
जीवन में बहुत कम या न मिलने वाले बहुत से सँग भी यहाँ सहृदयता प्रदान भी करते है ।
मनुष्य अपनी वृत्तियों से पीड़ित है , फेसबुक से नहीँ ...
मेरे व्यवहारिक जीवन में मुझे आध्यात्मिक माना ही नहीँ जाता । यहाँ से ही मुझे अनुभव से तादात्म्य कर अभिव्यक्त होने का लाभ मिला ।
मुझे नही लगता आप में भी बहुत लोग घरों मे भी आध्यत्मिक बात कर पाते होंगे , वहाँ वही सब है ... सब्जी क्या , दाल भात के युद्ध ।
विचार व्यक्त करना अलग है । व्यक्त विचार की प्रतिक्रिया जुटाना अलग । वास्तविक चिंतक को अपने चिन्तन के स्तर की चिंता होनी चाहिये ना कि प्रतिक्रियाओं की । आप हम जान लें हम सड़क पर बैठे है ,यहाँ हमारे विषय से किसी का कोई सम्बन्ध हो या न हो वह भी तांक झांक करता ही है । सदुपयोग हमारे हाथ है , हम फेसबुक का सदुपयोग करते रहें तो कभी नुकसान नही होगा ।
एकांत सत्य उद्घाटित करता है , बहुत से परिवार में कोई अपना फेसबुक एक दूसरे को देखने नही देते , अब तो फिर भी ठीक दस वर्ष पहले हम फेसबुक खुले में कहते थे लोग हमे ह्यता से देखते थे क्योंकि तब केवल फुहड़ता ही केंद्र थी , युवाओँ के लिये मानसिक वासना पूर्ति का मंच भर अधिक था यह । अब ऐसा नहीँ , लोग फुहड़ता से थक  गए । क्योंकि जो वो है वही रहना चाहते । एकांत में व्यक्ति अभिनय नही कर पाता ।
पहले करीब 3 वर्ष पहले मेरा एक लेख था कि फेसबुक पर हमारा व्यक्तित्त्व सत्य है , बाहर बदलता रहता है । यहाँ हम देह से एकांत में है। और जागृत जीव तो जानते है यहाँ दैहिक ओपचारिकता की आवश्यकता नही । जैसे अगर कृपाशंकर जी यही सवाल सन्मुख करते तो सौ प्रतिशत मेरा कोई उत्तर न होता । मैं बाहर व्यक्त होता ही नही , वहाँ दैहिक मंच है , दायरे है आयु आदि के ।
यहाँ समत्व का मंच उपलब्ध है क्योंकि देह द्रष्टा भर है यहाँ । चेतना क्रियान्वय अनुभव करती है । चेतना के दृष्टिकोण से समत्व अनुभूति होती है । मुझसे दस से बीस वर्ष छोटे लोग भी यहाँ बात करते है । और मैं दैहिक अगर स्वरूप और परिवेश में मिलूं तो अस्सी वर्ष के लोग भी झुकने लगते है जिससे वार्ता का पहलूँ ही बदल जाता है । हाँ अगर मुझे बाह्य प्राप्त सन्मान को यहाँ भी बनाये रखने की भूख है तो इस मंच पर मुझे गुप्त या पेज आदि से ही प्रस्तुत होने के अवसर है । मेरा मानना है फेसबुक पर हम चेतनाओं का मंच मान मिले ।
आप स्वयं विचारें आपकी जो छब यहाँ है वह पारिवारिक दशकों के सम्बन्ध में या प्रतिष्ठानों में दिवा-रात्रि उपस्थित होने पर भी है क्या ?
सत्य में आप सत्य प्रस्तुत कहां है ...
सत्यता से सदुपयोगी के लिये यह आध्यात्मिक लाभ है क्योंकि देह की इन्द्रियों की अपेक्षा कारण देह और उसके सँग से सूक्ष्म देह सक्रियता प्राप्त कर सकती है ।
अब मेरी बात पढ किसे हंसी आई , किसे क्रोध , किसने वाह वाही में भौंह छड़ाई यह मुझे पता नही न । तो यह ज्ञानेंद्रिय यहाँ भोग नही कर सकी ।बात लिखी । प्राप्त भावना सत्य मान आगे फिर बात होगी । प्रत्यक्ष में इंद्रिय परिवेश को लगातार भांप और भोग कर अपने ही सिद्धान्त पर टिक पाना कठिन कर देती है ।
15 मिनट हम कही भी ग्रुप में किसी एक को सुन सकते है । नही न ।
यहाँ आप मुझे पढ़ चुके है । लिखने में 15 मिनट लगे है । मुझे यहाँ कोई रोक न सका । और इतना लगातार आप टीवी पर भी न्यूजस में देखना एंकर तक नही बोल पाते , वहाँ भी बहस हो जाती है । तो कुल मिला कर अनुभव से अभिव्यक्ति की यात्रा के लिये उत्तम है । हाँ वाह वाही और माला  न पहन पाने के लिये देह का नुकसान है ,चेतना का नही ।
तृषित ।

Comments

Popular posts from this blog

Ishq ke saat mukaam इश्क के 7 मुक़ाम

श्रित कमला कुच मण्डल ऐ , तृषित

श्री राधा परिचय