काहे कहत सखी कारो री वाने , तृषित
काहे कहत सखी कारो री वाने
पिय मोरे , पिय मोरे ,सलोने लागे
मोर मुकुट नीको अधरन मुरली राजत काहे न सखी तू जावे , नित बंशी बाजत
सुन्दर सलोनो बदन कोमल अति प्यारो
नैंनन की झारी सुं नित निरखन वारो
काहे बनावे बतिया इह बैठी साँची झूठी
तोहे खोजत वन-वन फिरै लकुटी बाँकी टूटी
--- तृषित
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