संसार क्या चाहता है ?

संसार क्या चाहता है ??

भगवत कथाभाव रस अब एक ट्रेंड हो गया है ।
संसार चाहता है हमारा त्याग सच्चा हो पर भौतिक विकास भी भरपूर हो ।
पिछले समय एक कथा की बात के लिए मुझे बाहर जाना पड़ा , यूँ पहले ही एक कथा कार में मेरे ना जाने से केंसिल हो चुकी थी । तब भी इस बार दुरी अधिक होने से सामान्य ट्रेन से ही मुझे जाना हुआ । लौकिक रूप से भाव रक्षा के लिए एक भैया भी सँग थे । समय की प्राथमिकता में ट्रेन इंटरसिटी थी यह हमने महत्व ना दिया ।
वहाँ पहुंचे सन्मुख व्यवस्थापक महोदय लोकल ट्रेन का जान गए क्योंकि तब कोई दूसरी ट्रेन का समय था नहीँ ।
अब इतनी लोकल ट्रेन से आये व्यक्ति को वह पास न बैठावे कथा की तो बात ही क्या फिर ??
संसार , चाहता है वैराग्य पक्का हो । परन्तु निर्मल भगवत रस के लिये आडम्बर पुरे धरे हो यह भी । मैं बाई एयर फ्लाइट से अकेला जाता तो खर्च कुछ ही अधिक होता । क्योंकि फ्लाइट से जाने पर मुझे दूसरे शहर में दो घण्टे प्रतिक्षा नहीँ करनी होती ।
संसार दोनों बात चाहता है । विरक्ति और v.i.p. ट्रीटमेंट ।
संसार कभी राजी नही होता , एक महिला साधक के बुलाने पर एक कथा और वार्ता हेतु  पर हम पति-पत्नी  दोनों ही गये । अकेले या सँग पुरुष साधक होने पर संसार को ही असुविधा होती तो हम कृपा से प्राप्त दाम्पत्य के सँग ही गये । वहाँ एक आश्रम में हम रुके वहाँ भी पुजारी जी कहे कि यहाँ आयोजन आप द्वारा नही होगा क्योंकि यहाँ का जन मानस गृहस्थ से कथा नही कराते । अब बताइये हम दम्पति रूप भी ना जाते तो संसार फिर कोई नई धारणा बना ही लेता न ।

एक कथा उत्सव मे  कृपा से आयोजन-उत्सव  दिव्य पाया । सभी को दिवा रात्रि रस रहा । सिवाय एक आयोजक महोदय के क्योंकि मेरे अतिरिक्त उन्हें अन्य व्यवस्थाओं ने बहुत गहरा निचोड़ डाला था । भोगी या कामी को निष्काम रस समझ नही आता  । वहाँ दीनता निम्बू की तरह निचुड़ जाने पर बनती है । अन्य टेंट आदि सब सुविधा ने उनसे उनका उन्हें जो लग रहा वह इतना अधिक लिया की वहीँ उनका सब समय और रस रहा । कथा से वे वंचित रहे ।
यह बात इसलिये की मन की गति वहीँ होती है जिस वस्तु में राग । प्राकृत धन की महत्ता के युग में अधिक ऐश्वर्य जिस ऒर चला जावें वहीँ रस बनता है । भगवत नाम ही वास्तविक धन जब तक यह बात स्वीकार न हो । प्राकृत धन की गति अनुरूप ही संसार रस संयोजन करता है ।
भगवत रस अति दुर्लभ है , भोग विज्ञान से सदा परे है । भगवत कृपा से प्राप्य भगवत उत्सव का आयोजक ही वास्तविक रस नहीँ ले पाते , यह बड़ी विचित्रता है ।

श्री प्रभु ने यहाँ यह भी सिद्ध किया कि धन मद में डूबे संसार में भगवत रस रहने तक मन नही लगेगा । भगवत रस से बड़ा जब प्राकृत धन लगा तब ही धन मदमस्त सँग राग होगा ।

भगवत्प्रेमी का सँग ही इस कलिकाल में जीवन यात्रा में रसवत है । धन्यवाद इंटरनेट का , यहां भगवत प्रेमियो का सँग बना हुआ ।

उत्सव , कथा आदि से पूर्व मानसिक यात्राओं में हम ही राजा रहें । भगवत भावना से प्राप्त यह सेवा ही व्यवहारिक जीवन । और भिन्न भौतिक्ताओ से उत्तम क्योंकि भगवत रसगान का सुअवसर  प्राप्त ।
परन्तु व्यवहारिक जगत में ट्रीटमेंट विशेष । और ट्रीटमेंट दिलो दिमाग में भर गया कभी तो श्री युगल सरकार की अपूर्व अहैतुकी कृपानिधि के प्रति अपराध होगा ।

संसार के लिए संसार का अभिनय आवश्यक यह समझ आया । पर केवल अभिनय ... ।  आशीष दीजिये हृदय वहीँ रहे जहाँ है । ह्र्दयस्थ युगल को बाह्य विलास सुविधा की नहीँ स्थिरप्रज्ञ अवस्था के विकास से स्फुरित भावदेह की भाव यात्रा में निकुंज केलि में सुख । भाव नित्यटा बाह्य अभाव की यात्रा पर बना रहें ।

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