भगवत् कृपा से संग

भगवत् कृपा से मुझसे सब दिव्य ही भगवत् प्रेमी जूडे है ,कही न कही कोई न कोई विशेष है ।
बहुत दिव्य । कुछ को पता है , कुछ को नहीँ । अपनी ओर देखूँ तो सर्वथा अयोग्य हूँ पर लालच मेरा । सम्भवतः ऐसे सभी प्रेमी कभी प्रत्यक्ष नहीँ जुड़ पाता , मेरे भीतर के संकोच को समझ सरकार ने नए माध्यम से मुझे ऐसे साधक और सन्त जीवन से रसिक दिए , जो सभी हर तरह श्रेष्ट ही है , फिर भी उनके कोमल हृदय के भगवान खेल खेलते ही है । शब्द हीनता बढ़ रही है । फिर जीवन शब्दों की और जा रहा है , कैसे क्या होगा युगल जाने , पर सच सर्वथा 0 ही रहा हूँ , और रहना भी है । सभी को नमन । सभी ही दिव्य से दिव्य है । सम्भव है बहूतो का यह अंतिम सफर ही हो

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