जीवन संगिनी ।।। मंजु दीदी
जीवन-संगिनी
बहू स्वरूप में आकर तुमने
पति-घर-संसार सजाया है।
सजल हास, मृदुल सरल मुस्कान
सकल गृह पर सर्वत्र-नेह तुम्हारा छाया है।
तज सारा परिहास-विलास, जब
फूल संग काँटे भी आँचल में गिरते थे।
धूप-छाँव सम पल-छिन जीवन के
अल्हड़ वय में परिपक्वता भरते थे।
अनुभव सारे खट्टे-मीठे
स्नेह आँचल से बाँध लिये।
धीर-गम्भीर,शीतल कोमल सहचरी बन
तज काँटे, फूल-फूल सब छाँट लिये।
कृष्ण की क्रीड़ाओं में तुम सम-भागी
कौशल्या का आँचल तुम्हीं से भारी है।
बेटी रूप में कुछ-कुछ अधूरी
सम्पूर्ण बहू रूप में नारी है।
जीवन-तरूणाई की इस मधुर-माधवी बेला में
प्रति पल संग,झंकृत मन-वीणा के तार रहें।
मानों श्यामल अम्बर से झरती
स्नेह की मृदु-मीठी-मीठी सी बौछार रहे।
घात-प्रतिघात से क्या डरना
ये तो जीवन के साथी हैं।
स्मृति-झरोखों से रश्मि-प्रकाश सम
सरल वेदना भी दाम्पत्य-सुखी-संसार में आती है।
प्यार है पूजा,प्यार तपस्या
प्यार दुर्ललित हठीली इक क़ुर्बानी है।
स्नेह-पुलक से भरे,गहरे डूबे-डूबे रहो'मँजु'
विषाद,नैराश्य की छाया पास न आनी है।
( डॉ० मँजु गुप्ता )
Marriage Anniversary की बहुत बहुत बधाई।
Comments
Post a Comment