आकर्षण और संकर्षण

अगर हम अभिभावक है ।
अथवा सन्तान तो भगवान को समझना सहज है ।
हमारी अपनी ही समस्त उपाधियां दुरी है  , स्वयं की असत् सत्ता ।

मैं कौन हूँ
भगवान से प्रेम क्यों
हमारा क्या है
भगवान का क्या है
भगवान को क्या दूँ
भगवान से क्या चाहूँ 

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अभी और उतरना शेष है

जो खेंचे वह कृष्ण है
चुम्बक लोहे को खेंचे उसे कहेगे आकर्षण अर्थात् कृष्ण (प्रेम मार्ग)
यहाँ खिंचने में जो शक्ति है वहीँ राधा है , और खींचने से लोहे का उन में होने की शक्ति ही राधा है , परस्पर । जो तत्व गया उन तक वह केवल भाव है , सम्बन्ध है।

जो आये वह संकर्षण
चुम्बक लोहे तक आये उसे कहेगे संकर्षण अर्थात् बलराम (योग मार्ग)।
यहाँ की शक्ति शिव है , जो उन्हें खेंच लाया । दोनों और वहीँ शक्ति ।

प्रेम की शक्ति राधा
योग की शक्ति शिव

अतः दो ही पुत्र है , दो ही मार्ग । एक खेंच लेता है , एक आ जाता है ।
कृष्ण बलराम
अतः दो ही पुत्र है , दो ही मार्ग । एक खेंच लेता है , एक आ जाता है ।
जो आ जाए बलराम ( संकर्षण)
जो खींच ले वह कृष्ण
वह आये तो कृष्ण ना होंगे , क्योंकि वह खेंचते है
और खेंचते है निर्मल मन
जो हम नहीँ
जो निर्मल मन है वह ही भाव है
उनका सम्बन्ध
तो मान ले आप निर्मल नहीँ , विचार करें तो लग जाएगा
जो निर्मल है वह है उनका सम्बन्ध । भाव । और वहीँ आपको जीना है ।
उनका सम्बन्ध निर्मल है ,
बस
उसी में रहना भाव
और उसे पुष्ट कर लेना  महाभाव ।
यानी उनकी सखी निर्मल सम्बन्ध है । कृष्ण जी को सत्यजीत नहीँ , श्री जी मञ्जरी चाहिए , सत्यजीत निर्मल नहीँ केवल भाव निर्मल है । और उन्ही का दिया है

भजन हो , अपने सम्बन्ध रूप में वो भजन , वो प्यास , वो पथ , वो शक्ति , सब राधा है
प्रिया प्रियतम् के नित्य मिलन में मिलती उनसे उनकी प्रिया ही है। 
गहनता में , जब तक साधक है , बाधा है , मञ्जरी आदि रूप में आत्मसमर्पण हुआ उनका मिलन होता है ,सोभाग्य से भाव रूप में दर्शन ।

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