रस की उपलब्धि में भाव आवश्यकता इस ‘रस’ की उपलब्धि ‘भाव’ के बिना नहीं होती। ‘भावुक’ हुए बिना ‘रसिक’ नहीं हुआ जाता। ‘भावग्राह्य’ या भावसाध्य रस का प्रकाशन - आस्वादन भाव के ब...
क्षमा विनय कुछ ... सब सहयोग करे तो व्हाट्स एप हटाना न होगा ,अभी आवश्यक भी कुछ । वरन , अतः कुछ विनय । पूर्व में ही क्षमा कीजियेगा । जो भी व्यक्तिगत बात करते ,भगवत चर्चा ही करें । अथवा...
बड़ी कृपा से किसी भावुक की भावुकता पक कर उसे नित्य सत्य रस झारियों में ले जाती है । भावुक को भावुकता को सहजना चाहिये । पात्र में थिरता आवश्यक है जब ही कृपा वर्षा से वह लबालब हो...
अलबेली सुकुंवारी नैननिं के आगे रहै , तब लगि प्रीतम के प्रान रहैं तन में । । यहै जिय जानि प्यारी रंचकौ न होति न्यारी , तिनहीं के प्रेम-रंग रँगि रही मन मे...
वह दिव्य स्वरूप जो माया - काल में गहन डूबे हम भौतिकी जीव के लिये नहीँ खुलता ... हमारौ बृन्दावन उर और । माया काल तहाँ नहिं ब्यापै , जहाँ रसिक - सिरमौर । छुटि जात सत - असत बासना , मन की दौ...
जीवन ... ईश्वर का यह उपहार आज हमारे द्वारा दुविधा हो गया है । किसी से भी पूछिये क्या जीवन जीया । उत्तर में हाँ भी हो तो अवश्य अंतःकरण कहेगा ना । जीवन का उदय ही नही हो पा रहा , सम्पूर...
सतरंज खेलत स्यामास्याम । दृगन बोलत तुम ही जीतो घनश्याम । हारूँ तुम पे नित नव प्राण पावे मोहे मेरो अभिराम । रस तो सजनी नैनन पियूँ , अबके तोसे मैं ना जीतूं । हे प्यारे ऐसे न छेड़...
सत्य भाव गहन होता । गहन अति गहन । यही निभृत भाव तो रस । यह ऐसा की जैसे हंस का जोड़ा अपने भाव केलि में डूबा । पर वहाँ जो हँस नही उनकी भाव भंगिमाओं को समझ न सकें । प्रियालाल सदैव निभ...
अचाह की प्राप्ति ... हम भगवत पथिक पथ के परिणाम में किन्ही दिव्यतम सुख लालसा में डूबे रहना चाहते है , परन्तु भोग छूट नहीँ पाते । पथिक का हृदय बहुत से संकल्पों में है , चाह है ... तो पथ ...
*शब्दातीत लीला स्पर्श* नित्य लीला अधिकतम शब्द शुन्य । संगीत रहता पर अप्राकृत वह संगीत , यहाँ नहीं वैसा गहन । शब्दातीत होता प्रेम । उनका तो अति गहन । वह शब्द भी प्राकृत नहीं हो...