प्रियालाल की प्रीत आसक्ति , तृषित
अलबेली सुकुंवारी नैननिं के आगे रहै ,
तब लगि प्रीतम के प्रान रहैं तन में । ।
यहै जिय जानि प्यारी रंचकौ न होति न्यारी ,
तिनहीं के प्रेम-रंग रँगि रही मन में । ।
परम प्रवीन गोरी हाव-भाव में किसोरी ,
नये-नये छवि के तरंग उठै छिन में । ।
हित ध्रुव प्रीतम के नैंन - मीन रस लीन ,
खेलिबौ करत दिन - प्रति रूप - वन में ।।
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