श्याम न निरखि , तृषित । फूल भाव

कौन घनश्याम ??

मैं ना देखी ...

मोरी अँखियाँ
मोरे प्राणन
मोरे अधरन
मोरे सब आभरण

मधु गिरावत
फूलन कुञ्ज
में बिखरी ...

फूलन कुञ्ज
डूबी , मधु पीवत ...
हाय कबहुँ नैनन
श्याम न निरखि ...

मोहे दिखत चलत फिरत
कुमिदिनी शेखर रस फूल ही फूल

तू कहती श्याम ...
मैं तो फूलन ही लिपटी ।

फूल भरत , अंग अंग सब
हाय अब किन अंखियन
कौन जन्म मैं श्याम को देखी ...

सखी , मैं तो फूलन  भंवर में जा ढुरकी ।
-- तृषित

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