लीला रस वार्ता , तृषित । श्री प्रिया सन्दर्भ
सत्य भाव गहन होता । गहन अति गहन । यही निभृत भाव तो रस । यह ऐसा की जैसे हंस का जोड़ा अपने भाव केलि में डूबा । पर वहाँ जो हँस नही उनकी भाव भंगिमाओं को समझ न सकें । प्रियालाल सदैव निभृत रहते है । क्योंकि उनका गहन मिलन प्रकट नही । उनके संवाद भी विचित्र ।परन्तु श्री प्रिया की स्फुरिणी गति , रति , अनुराग ... सब गहन । क्योंकि सब प्रियतम सुखार्थ । जैसा कि कहा था उनकी मन्दस्मिति अधरसित रसिलिनी रस प्रभा विलासों का सार । क्योंकि उनके अधर जानते प्रियतम का सम्पूर्ण सुख । श्री प्रिया का भावात्मक ऐसा सहज समर्पण होकर प्रतिक्षण रस भाव गहन होता । गहन रागिनियों को ताल सहित गहनता से सुनने से यह समझ आने लगेगा ।
श्री प्रिया घनीभूत रस माधुर्य स्वरूपा ही । जैसे दृविभूत रस का स्पर्श हो । हिम के विग्रह शीतल होते पर मधुर और कोमल नही । पुष्प कोमल पर मधुर , शीतल हो जरूरी नही ।
श्री प्रिया के स्पर्श से प्रकाशित सौरभ मधु से मधुर । उनकी कोमलता को छुए पाषाण पुष्प से कोमल , उनके स्पर्श सुवास से आती समीर हिम पर्वतों को शीतल स्वरूप देने वाली । वह सम्पूर्णा है । अति घन विग्रहा । कलाएं उनके समक्ष दासियां ... और सदा नव ही पाती । हम क्या , कला विशेषज्ञ उनकी कलाओं की परिभाषा करे उतने में कुछ नव प्रकट । सरस्वती जु अवाक , और प्रसन्न चित्त हो बलैया लेती । इस प्राकृत धरा पर दृश्य रूप अणु भी नही जिसे श्री प्रिया के स्वरूप से हम कुछ एक समझे । रसिको ने वह कुछ अनुभव किया , क्योंकि भाव प्रवेश वहाँ ... सेवा का प्रवेश ... दासी और दीनता का प्रवेश । श्री प्रिया को सौंदर्य , माधुर्य , छबि सब चित्रवत निरखते है । श्री प्रिया की रस स्थिति हो तो भाव राज्य की प्रकृति भी चित्रावली हो स्थिर उनमें डूब जाती है । और श्री प्रिया का अणु अणु श्री प्रियतम हेतु । प्रियतम की क्षमता से अधिक सरस् वर्षा से वह कम्पन आदि सँग रोमांचित रहते ।
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