केवल भगवत चर्चा हो मुझसे , तृषित
क्षमा विनय कुछ ...
सब सहयोग करे तो व्हाट्स एप हटाना न होगा ,अभी आवश्यक भी कुछ । वरन , अतः कुछ विनय । पूर्व में ही क्षमा कीजियेगा ।
जो भी व्यक्तिगत बात करते ,भगवत चर्चा ही करें ।
अथवा उस चर्चा का सम्बन्ध भगवत भावना से ही हो ।
कोई लोक या व्यवहारिक बात नही ।
मैं भी करूँ , मुझे टोक दे । बहुत से भावुकों का मुझे केवल नाम शहर ही पता , इससे ज्यादा कभी व्यक्तिगत पूछताछ नही हो मेरे द्वारा भी ।
श्री प्रभु और जीवन में जुड़े रसिको की कृपा के प्रति मुझे निष्कलंक होना आवश्यक अतः
व्यक्तिगत और कोई भी लौकिक बात अब मै फोन द्वारा नही करूँगा । न लिखित । न कॉल ।
हाँ भाव चर्चा । भाव प्रश्न , कोई भी आध्यात्मिक चर्चा ही ।
हम सब भक्ति पथ पर चलते चलते मिले है । पथ पर पथ की चर्चा हो , और अधिकतर भजन भाव बना रहे ।
अभी भाव उत्सव का दायित्व है , मेरे निज भाव का पोषण भी वहाँ होता और सेवा का अवसर भी रसिक और भावुकों की कृपा से मिलता ,उन सन्दर्भ में बात हो सकती है ।
अगर मेरे द्वारा भगवत पथ से भिन्न बात हो मेरा तत्क्षण त्याग कीजिये ।
अभी यहाँ बने रहना शेष ... अतः उपरोक्त बातें मुझे निर्वहन करनी होगी ।
भाव रूप हम स्त्री - पुरुष से परे है , परन्तु बाह्य लीला में आरोप से भगवत और भागवत अपराध बनता है , रसिकों ने सहज कृपा की है ... उनके प्रति मुझे सजगता रखनी होगी , अतः अब स्त्री साधक मानसिक नमन भी ना करें ।
मेरे द्वारा कोई अपराध बना भी इन वर्षों में तो उसमें मेरे पथ और मेरे सब दीर्घ जन का कोई सम्बन्ध नहीँ , वहाँ स्पष्ट मेरा निज दोष है । मानवता छूटने से कभी कभी पशुता भी आहार विहार के प्रभाव से हम नव पथिकों में होती । अतः व्यवहारिक चर्चा पूर्ण निषेध ही हो ।
हमारे सभी ग्रुप पर भी भावुक आध्यात्मिक पथिक रहें , जिन्हें चुटकुले या और कुछ भेजना हो वह ना रहें ।
जो शायरी भेजते है उसमेँ प्रभु के प्रति कटाक्ष ना हो , उन्हें सुधरने की आवश्यकता नहीँ । वो सम्पूर्ण रस रूप है ।
मुझे इससे निज पीड़ा होती , और समस्या बन जाती । क्षमा प्रार्थी यह मेरी कमजोरी अभी छूट नही रही ।
आंतरिक लीला रस पथिक बाह्य जगत की उथल पुथल से निज भाव और पथ को प्राथमिकता दे ।
शेष सब बदल जाता है , भाव सिद्ध तब ही होगा जब प्रतिकूलता में भी वह त्याज्य न हो ।
वैष्णव अपराध से बचे , यह सम्पूर्ण भगवत पथ का हनन कर देता है । वैष्णव हृदय , अथवा भावुक हृदय के प्रति स्वप्न में भी दुर्भाव ना हो ।
आकलन का दायित्व अध्यापक का होता है , परस्पर हम आकलन ना किया करें । क्योंकि हमारे प्रभु के लिये सदा हम उनके प्यारे ।
श्यामाश्याम की सेवा भावना का मेरा निज भाव आप सभी रसिक वृन्द सँग पोषित हुआ और होगा भी ...
सभी अपराध क्षमा कीजियेगा , क्योंकि मुझसे वैष्णव अपराध होते रहे तो कैसे भाव गाढ़ता होगी ।
वैष्णव जन मेरी बातों को निज हृदय में प्रवेश न होने दे , अच्छी लगे अथवा बुरी बालक का प्रमाद खेल समझे ।
वैष्णव हृदय के अणु मात्र वेदना होने से मुझे वैष्णव अपराध हो सकता है । अतः वैष्णव जन कृपा बनाये रखे ।
हर बात पर मै मानसिक स्वामी जु का नाम ले लेता हूँ , उनके पावन नाम के प्रति अपराध न हो अतः अभी लिखने में नही आ पाता । अभी कोई बात अच्छी लगती , कोई बुरी भी होती तो वहाँ नाम की महिमा बनी रहें , सम पथ रसिकों को यह भी कष्ट होता हो तो क्षमा । कृपा करें कि अधिकतम लिख और गा सकूँ ।
किन्ही को भी कोई हानि हुई हो मुझे क्षमा किजिएगा ।
कोई भी लाभ हुआ हो प्रियालाल कृपा ।
एक और निवेदन मैं गृहस्थ हूँ , गुरुभाव विरक्त सन्त में ही देखें । हां कोई बात मेरी समझ की हुई तो सँग हूँ ।
भगवत उत्सव निज प्रतिष्ठा भाव से नही होते । ऐसा कोई कहता तो सेवा अपराध बनता मेरा । वहाँ मै सेवक हूँ बस । और सदा सेवक रूप ही होगा । बाह्य कुछ भी दीखता हो , मेरा निज सुख युगल चरण रहे यह आशीष ही दे । वही युगल चरण रज मेरी जीवन निधि ।
मुझे कथा वाचक भी ना कहे । कोई शब्द न हो तो कैसे भी पुकार ले , आलसी , अरे ओ भोगी , निठल्ला कुछ भी । जो सच में हूँ , जिन्हें सुन मेरा कल्याण हो । कोई कथा वाचक न कहे ।
क्योंकि वाचक मूलतः वहीँ यह शब्द सेवा में मुझे पीड़ा देता , मन होता अब ना ... ... I m just instrument only . वो भी perfect नही । मेरे प्रभु इतने प्यारे की टूट फुट सब किनारे कर बजा लेते है ।
केवल भगवत चर्चा हो मुझसे कृपा करें ।
जयजय श्यामाश्याम । तृषित ।
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