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Showing posts from August, 2018

जगत और श्रृंगार सेवारस , तृषित

*जगत और श्रृंगार सेवारस* स्वरूपतः मूल में तो रूप-प्रेम का , रस-भाव का , अर्थात श्रीप्रियाप्रियतम का सम्पूर्ण सुख आह्लादित हो कर उन्हें नित्य सुखी कर रहा है । परन्तु भोग जगत को ...

आमार जीवन सदा पापे रत , पद

आमार जीवन सदा पापे रत नहीं कोई पुण्य लेश अन्यों को उद्वेग दिया अनंत, दिया जीवों को क्लेश। निजसुख हेतु पाप से नहीं डर दयाहीन मैं स्वार्थपर पर सुखे दुखी सदा मिथयाभाषी परदुख ...

रसिक श्रीजी कृपा स्थिति

भैया अबकी वृन्दावन गए थे वहां प्रेमानंद जी के आश्रम भी गए । वैसे हमारे पति आस्तिक तो है किंतु भगवान से एक दूरी ही बनाए रखते हैं क्योंकि इनसे किसी ने कहा भी था की तुम इस पथ पर मत ...

चेतना को एकत्र रखिये , भटकिये मत । तृषित

देखिये जगत नित्य अखबार पढ़ता है , उससे कल्याण नहीं होने वाला है । न किसी लेखक के प्रति वह जीवन भर भाव बना पाता है । अतः हमारी बातों का केवल पाठक रहकर बात न बनेगी । उस पाठ को जीवन स...

प्रेम की राखी , तृषित

*प्रेम की राखी* निरखि निरखि रूप सलौना... नैन हारे चित्त चहै रस चखै नित नवीना... *री रंगीलो सलूनो,रसीलो फूँदनो प्यारो* सखी...सजाई दी...सजाई दी री...सेज सलोनी ...प्रेम की राखी करन चली सर्व स...

बन्धन भाव , तृषित

हाथों को सँवार दो सखी को सँवार दो मुझे मेरे दिल की सुना दो नाम मेरे पिया का बता दो मेहन्दी लगा दो ,कंगना पहना दो झूले लगवा दो , सखी पिया मिला दो कलावां बंधाई दो , याद दिलाई दो सखी ...

जीव भाव भँग लीला , तृषित

जीव भाव भँग होने पर स्थायी नित्य भाव-जीवन जो प्रकट होता है , जब तक वह भाव स्पर्शित होता है । तब तक नित्य स्वरूप स्वभाव ही रँग-सँग स्वाद दे और लें रहे होते है । भाव स्वरूप ऐसी मानस...

सघन अदृश्य , तृषित

*सघन अदृश्य* सामान्यतः एक स्थिति होती है जहाँ प्रेम प्रकट हो जावें तो महतिकृपा है । प्रेमास्पद का दुर्लभतम सँग मिलें तब भी अति सघन कृपा ही है ।  वहीं प्रेम में एक स्थिति है , गहन (सघन) गाढ़ जहाँ प्रेमी को प्रियतम सँग में भी अलभ्य सुख होकर भी दृश्य की अदृश्यता रहती है ।  दृश्य प्रकट होता है दर्शनलालसा से और दर्शन भाव प्रकट होने पर नित्य सरसतम और और सरसतम मधुरतम होते जाते है ।  भाव विहीन स्थिति में भगवत स्वरूप दर्शन प्राप्त नहीं होते , होंवें तब भी उन दर्शन में भगवदीय स्वरूप अनुभूति नहीं होती क्योंकि भावना का अभाव है । जैसे श्रीबांकेबिहारी - श्रीराधावल्लभ आदि दर्शन सर्व सामान्य को सुलभ्य है , परन्तु भाव विहीन को दर्शन सुलभ होने पर भी भावना के अभाव में आस्वादन नहीं मिलता । सन्मुखता में भी सरसता जब ही अनुभवित होगी जब भावना स्थिर होंवें । वहीं प्रेमी भावुक जन को भावातिरेक स्थिति प्रेमोन्माद स्थिति होने से क्षणिक दर्शन पान कठिन हो जाएगा । अति सघन प्रेमी से निहारते न बनेगी , वहाँ भावना इतनी सघन होगी कि आस्वादन की अति मधुता में चित्त छबि को सन्मुख पाकर भी आकृति नहीं दे सकेगा । अत...

दृढ़ता से भजन , तृषित

भजन अभाव में दोष दर्शन प्रकट होता है । जगत सत्य लगने पर अपने पथिक की अन्य द्वारा कल्याण पथ प्रकट होने पर व्यापारिक चिंता रहती है । भजनानंदी सदा एकांतिक स्थिति में है , जगत सम...