*सघन अदृश्य* सामान्यतः एक स्थिति होती है जहाँ प्रेम प्रकट हो जावें तो महतिकृपा है । प्रेमास्पद का दुर्लभतम सँग मिलें तब भी अति सघन कृपा ही है । वहीं प्रेम में एक स्थिति है , गहन (सघन) गाढ़ जहाँ प्रेमी को प्रियतम सँग में भी अलभ्य सुख होकर भी दृश्य की अदृश्यता रहती है । दृश्य प्रकट होता है दर्शनलालसा से और दर्शन भाव प्रकट होने पर नित्य सरसतम और और सरसतम मधुरतम होते जाते है । भाव विहीन स्थिति में भगवत स्वरूप दर्शन प्राप्त नहीं होते , होंवें तब भी उन दर्शन में भगवदीय स्वरूप अनुभूति नहीं होती क्योंकि भावना का अभाव है । जैसे श्रीबांकेबिहारी - श्रीराधावल्लभ आदि दर्शन सर्व सामान्य को सुलभ्य है , परन्तु भाव विहीन को दर्शन सुलभ होने पर भी भावना के अभाव में आस्वादन नहीं मिलता । सन्मुखता में भी सरसता जब ही अनुभवित होगी जब भावना स्थिर होंवें । वहीं प्रेमी भावुक जन को भावातिरेक स्थिति प्रेमोन्माद स्थिति होने से क्षणिक दर्शन पान कठिन हो जाएगा । अति सघन प्रेमी से निहारते न बनेगी , वहाँ भावना इतनी सघन होगी कि आस्वादन की अति मधुता में चित्त छबि को सन्मुख पाकर भी आकृति नहीं दे सकेगा । अत...