दृढ़ता से भजन , तृषित

भजन अभाव में दोष दर्शन प्रकट होता है ।
जगत सत्य लगने पर अपने पथिक की अन्य द्वारा कल्याण पथ प्रकट होने पर व्यापारिक चिंता रहती है ।
भजनानंदी सदा एकांतिक स्थिति में है , जगत समक्ष होवें कि विपरीत होवें ।
जगत से साम्यता भजन पथ नहीं है ।
जगत विशाल गर्त में धँसा है अतः शरणागत रूप श्री प्रभु ही व्यापक कल्याण की लीला प्रकट करते है ।
भजनानंदी भी जीव के भजन की प्रबलता हेतु उन्हें संस्कारि करें , सच्चे भजनानंदी को बारम्बार गुरु परिवर्तन की आवश्यकता नहीं है ।
जीवन मे संसारी का वस्तु के प्रति बदलती ममता का ही स्वरूप है सद्गुरुवर परिवर्तन , जिससे दो महा भावुकों में भजन की अपेक्षा विद्रोह रूपी स्पंदन रहता है ।
सिद्ध स्वरूप में अहंकार रूप ईश्वर ही विराजमान है अतः उन्हें नमन करें ।
पथिक अपने सद्गुरु के मंगल रक्षण हेतु खूब भजन करें क्योंकि गुरु केवल भजन में ही मग्न रहते तो हमारा कल्याण प्रकट ना होता । क्योंकि आंतरिक भजनानन्दी के समक्ष जीव शरणागत होता ही नहीं है , अतः जीव के कल्याण के लिए सन्त प्रकट रूप भाव सेवाओं का वितरण करते है । सो शरणागत का कर्तव्य *भजन* द्वारा श्रीगुरु सेवा ।
सभी ओर वास्तविकता का स्पर्श लोभ ही होने पर छद्म स्पर्श प्रकट ही नहीं होता है ।
पथिक अपना चित्त-शुद्ध रखें , तब ही व्यापक शुद्धि दर्शित होगी, भजन से चित्त शुद्ध होगा । (भजन से अर्थ हमारा है ,निरन्तर नामरस स्मरण) तृषित ।
यह जगत का प्रभाव भजन से ही छूट सकता है । भजन  पथ पर केवल स्थिरप्रज्ञ आ सकता है , अधिक जगत सँग के  विकृत परमाणु से भजनानंदी हृदय को भी माया छल सकती है । अतः सर्व मंगल और रक्षण हेतु भजनमय रहा जावें ।  तृषित । जयजय श्रीश्यामाश्याम जी ।

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