किसी भी प्रकार का भक्ति का स्वांग (दम्भ) अभिनय होने से बेहतर है प्रपंच में मिले अभिनय को ही भलीभांति निभा लिया जावें । भगवत पथ पर अभिनय होना और बाह्य प्रपंच में प्राणों को आह...
प्यारीप्यारे के प्रेम की सेवा । प्यारीप्यारे के प्रेम का ख्याल ही रसिक रीति में है । तुम लालन संग मुदित विराजो मोहे तो करो श्रीयुगल चरणन की चकोरी । प्रेमी वही है जो प्रेमास्पद के प्रेम की सेवा में हो । सो ही ...रसिकन कृपा बिनुं रंच ना उपजे प्रेम ! शेष अपनी चाल में स्वार्थ भरी चालाकी रहती है । रसिक रस रीति और जीव की अपनी रीति में यह भेद है कि जीव की रीति में उसका अपना सुख है और रसिक रस रीति में रसिक श्रीयुगल श्यामाश्याम जू का सुख ही सेवामय है । श्रीयुगल की अति दिव्य सुखविलास भावना रसिक रीति है । जीव रस रीति से हटकर जब केवल अपनी तृप्ति हेतु चलता है , उन्हें अपना आनन्द या सुख या विरह आदि से पोषण बनता जाता है । एक दशा है जिसे सुगन्ध आई और मूर्छा बन गई और एक है जो उनसे उनकी सुगन्ध होकर उनके लिए बह रही दशा हो और किसी सुगन्ध को अपनी सुगन्ध नहीं अपितु भिन्न सुगन्ध स्फूर्त होगी । एक दशा है कि सुरस मधुर झाँकी बनी और अश्रु बह पड़े ... हृदय गदगद हो उठा ... और यह अपनी दशा भाने लगी फिर इसके हेतु दर्शन बनने लगा कि तुम खड़े रहो और मुझे तरल सरस बने रहने दो । रसिक रीतियों में ...
जिनकी भीतरी गति लोक संग्रह में है वह चतुर होने में है पर यह प्रपंच का संग्रह केवल मूर्खता है । चतुरता भी वह ही सच्ची है जो प्रेमास्पद को रिझा सकें । जैसे नागरता की रासि किशोर...
शरण होनी चाहिये आश्रय होना चाहिये अनुग्रह होना चाहिये अनुसरण होना चाहिये नकल नही होनी चाहिये क्योंकि केवल प्राप्तियों की नकल हो सकती है । त्याग की नकल नही की जा सकती । भि...
भाव-भक्तिपथ पर अपने दोषों को अपना मान लेना ही निर्दोषिता को छू लेना है --- *तृषित* वैसे ही अपने अभावों की कृपा का दिव्य अनुभव महाभाव वर्षा स्नान --- *तृषित* और जिनके भी जीवन में द्व...
अपने अभाव अनुभव से ही महाभाव वर्षा की स्वाद लीला है । प्रपंच अभाव से विपरित अपने प्रभाव के बल पर खेल रखना चाहता है । अभाव जो कि है उससे छूटने की माँग ही प्रभावी तो बना सकती है प...
असमर्थ हम सभी कितना ही अभिनय करें परन्तु हम समर्थ होना चाहते है , असमर्थ रहना नहीँ । विधान पुनः - पुनः और पुनः हमें असमर्थ ही सिद्ध कर देता है । क्यों ??? क्योंकि विधान में ही हमा...
असमर्थ हम सभी कितना ही अभिनय करें परन्तु हम समर्थ होना चाहते है , असमर्थ रहना नहीँ । विधान पुनः - पुनः और पुनः हमें असमर्थ ही सिद्ध कर देता है । क्यों ??? क्योंकि विधान में ही हमा...
वृंदावन मकरन्द ..... मधुकर गोकुलचन्द January 21, 2016 व्रज समुद्र मथुरा कमल , वृन्दावन मकरन्द । व्रजबनिता सब पुष्प है , मधुकर गोकुलचन्द । । - व्रज मण्डल प्रेम रूपी समुद्र है , सहज रूप से अमृत व...
किसकी मोहब्बत सारा जहाँ मोहब्बत की अल-ए-ग़ज़ल पिला रहा और है जिसे मोहब्बत वो इब्तिसाम पर अटक सुन रहा मुहब्बत हो मुझे , इतना भी ख़्वाब-ए- आशियाँ ज़रूरत नहीँ हैं उन्हें मुहब्बत बेइ...
दृगबिन्दु थे अमिट अन्तर-सँग धावक झरते देख हिय-रँग अब लुप्त-गुप्त छिपे रहे रहता सिमटता चित्त अनंग निर्धन सेवक क्या करें व्यय चोरी होता निजधन ... कहाँ रहता है दृग तेरा झरती झा...
युगल की श्रृंगार सेवा । सुख सेवा । बिहार सेवा । विलास सेवा । विश्राम सेवा ही सखी का स्वरूप स्वभाव है । युगल सुख ही सखी का सुख है । और गहन होता श्रृंगारविलास सखी है । यह युगल सु...
जिसे कुछ नही चाहिये होता उसे ही सब कुछ मिलता है । जिससे वह मिले हुये रस से सेवा कर सकें अपने प्राण पियप्यारी की । बहुत बार मिला हुआ दिव्य पारितोष सेवाओं में विघ्न बन जाता है सखी । सच में जिसे कुछ भी नही चाहिये वह ही भीगे हुये ललित कलित केलियों में सेवामय है । सो जैसे लोक में वस्तुओं के बाज़ार है । वैसे ही भाव पथ पर पथिक अगर भावों को वस्तु मानता है तो वह स्थिर नही हो पाता । भीतर का पथ अन्तरिक्ष की भाँति व्यापक विस्तरित है परन्तु निर्द्वन्द होकर लोकेष्णा-तृष्णा-भुक्ति-मुक्ति पार करके अपनी प्राणेश सेवा-लोलुप्ति से ही प्रकट होता है निज-भावदेश । परन्तु जब तक समग्र अपनी तृषा ना होगी तो किसी के पास कोई भावसेवा या वाणीजू या प्रसाद देख कहेगा मुझे भी चाहिये ... क्या सत्य में उसे अभीष्ट मान प्राण पुकार रहे थे अथवा केवल संग्रह वृति से ही वह चाह है ..फिर उसमें गोता ना लगाकर वह भावुक फिर अन्य के पास , अन्य कुछ पाकर कहेगा ...मुझे भी चाहिये । सो जिसे चाहिये वह मिलने वाली वर्षा को अनुभव नही करता , वरण वह सब पिया जावें जो चाह शेष अर्थात् इच्छा बिना मिल रहा होता है । क्योंकि जिसे सब कुछ (प्यारी...
श्रीहरि या श्रीगुरुवर जिन्हें भाव-सांझा (प्रचार) हेतु चुनते है । उनसे चूक नही होती क्योंकि वह सेवार्थ सेवामय होते है उनकी अपनी स्थिति में सांझा हेतु सामर्थ्य अथवा क्षमता ...