सखी .. तृषित
युगल की श्रृंगार सेवा । सुख सेवा । बिहार सेवा । विलास सेवा । विश्राम सेवा ही सखी का स्वरूप स्वभाव है ।
युगल सुख ही सखी का सुख है ।
और गहन होता श्रृंगारविलास सखी है ।
यह युगल सुख या युगल रस या युगल केलि या युगल श्रृंगार या युगल सेवा ...वह नही है जिसमें श्यामाजू और श्यामसुन्दर की तनिक भी पृथकता हो ।
यह सुख- रस-केलि-श्रृंगार-सेवा आदि वह है जो श्यामाश्याम में एक हो गया है । श्रीयुगल का जीवन जहाँ अभिन्न हुआ है वही सखी का जीवन प्रकट हुआ है । सखी को प्यारीप्यारे दोनों प्यार बढता हुआ चाहिये ..अपने पर नही । दोनों का परस्पर ।
प्यारीप्यारे की सघन निजता सखी रचती है । सखी जो दोनों की अभिन्नता का श्रृंगार सेवा देना चाहती वह श्यामाश्याम की अपनी भावना से भी सघन होता है । सखी उन्हें परस्पर ऐसा डुबोये रखना चाहती कि वें सुलझ ना सकें ...और और उलझते रहे युगल सखी के प्राणों में ।
सखी इसलिये केलि को गाती कि युगल उसमें भीगते जावें ।सखी युगल केलि को सुनती क्योंकि वही उसका जीवन । सो सखी भावित उज्ज्वल रस के पदों में प्यारीप्यारे का अति सघन विलास सखी गाती जिससे वह युगल खेलें और नित्य नव-नव भाव-अनुरागों में भरकर खेलें । सखी को अनुभव करने हेतु हियोत्सव सुनिये । और हियोत्सव में सखी के उन्माद को इसलिये अति तीव्र मधुता से नही कहा जाता क्योंकि श्रोता सभी युगल की सखी नही है । अधिकतम जीव स्थिति पर भी नही है ... भोग स्थिति पर है ।
परन्तु अगर होने वाले उत्सवों में आप सखीजन सन्मुख होवें तो मोहे आपके हिय की माँग अनुरूप सखी के विलास-स्वभाव सौंदर्य या सेवा और सुख को अति सघनता में परोसने मे कोई असुविधा ना होगी। तृषित । तलाश मोहे भी है युगल सेवाभावित तृषित सखियन की । जो सुनें युगल क्रीड़ाविलास और और और ... गहनता चाह्वे । जयजय श्रीश्यामाश्याम जी
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