निर्दोषता । तृषित
भाव-भक्तिपथ पर अपने दोषों को अपना मान लेना ही निर्दोषिता को छू लेना है
--- *तृषित*
वैसे ही अपने अभावों की कृपा का दिव्य अनुभव महाभाव वर्षा स्नान
--- *तृषित*
और जिनके भी जीवन में द्वन्द बारंबार तंग करते होवे उन्हें
पूतना वध - अघासुर वध - बकासुर वध आदि असुर उद्धार लीलाओं का पाठ करना चाहिये । जिससे द्वंद्वात्मक स्थितियों का उद्धार सिद्ध हो सकें । तृषित ।
। जयजय श्रीश्यामाश्याम जी ।
हरि गुणगान में सभी स्थितियों को दिव्य-सुख नित्यवर्धनमान है
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