दम्भ - तृषित

किसी भी प्रकार का भक्ति का स्वांग (दम्भ) अभिनय होने से बेहतर है प्रपंच में मिले अभिनय को ही भलीभांति निभा लिया जावें ।

भगवत पथ पर अभिनय होना और बाह्य प्रपंच में प्राणों को आहुत किये भोगी रहने हमारे भक्त दिखाई देने पर भी अभिनय हेतु केवल नाट्य कौशल पुरस्कार के अतिरिक्त कोई उपल्ब्धि नही होगी ।

मिले हुये प्रपंच में मिले हुये पात्र सँग अभिनय को रखने से भगवत-पथ पर स्वांग नही होता ।

भक्ति-प्रचार में प्रशंसा मिलने के लोभ से भक्ति अभिनय की आवश्यकता होती है ।

किसी वास्तविक प्रचारक को भगवतपथ रूपी भास्कर को असत की इस विषयी रात्रि में दिखा देना जैसा दूभर प्रयास करना होता है अर्थात् जड़ में चेतन प्रकट करना सा अनुभव होता है ।

जब चेतन स्वयं को जड़ देह और जड़ जगत में परतंत्र रखे है तब कैसे अपनी ही जड़ देह में भी छिपकर खेलते सच्चिदानंदघन चेतन का अनुभव किसी को हो पाता है ।
सत से असत(जड़) मिटाकर सत्य का सँग अर्थात् असत का त्याग और सत्य की प्राप्ति ।
सो भगवत पथ का वास्तविक प्रचार रात्रि में भास्कर बोध कराना सा दूभर है । क्योंकि सत्य और असत्य का मिलन होता नही है और जगत असत से छूटता नही है । सत्य से मिलना चाहता नही है सो केवल कृपाविवश ही इस प्रचार को निभाया जा सकता है । यह सबसे दिव्य चम्त्कार है असत को सर्वथा भुलकर सत्य का नित्यस्मृत अनुभव चाहना ।
(जीवन में क्षणिक क्षण भी असत की सम्पुर्ण विस्मृति सत्य का सहज सँग ...सत्संग है)

Comments

Popular posts from this blog

Ishq ke saat mukaam इश्क के 7 मुक़ाम

श्रित कमला कुच मण्डल ऐ , तृषित

श्री राधा परिचय