नकल ना हो - तृषित
शरण होनी चाहिये
आश्रय होना चाहिये
अनुग्रह होना चाहिये
अनुसरण होना चाहिये
नकल नही होनी चाहिये
क्योंकि केवल प्राप्तियों की नकल हो सकती है ।
त्याग की नकल नही की जा सकती ।
भिन्न भिन्न फूल पत्तों का झर जाना समान दिखने पर भी स्थिति अनुरूप सदा ही नवीनता के श्रृंगार हेतु नवीन होता है ।
झरण की नकल नही हो सकती सो आदर रखते हुये झरित स्थितियों के प्रति आदर होना चाहिये ।
झरण (छुटना = त्याग) की नकल नही हो सकती सो आदर रखते हुये झरित स्थितियों के प्रति आदर होना चाहिये ।
कभी भी त्याग की नकल ना किसी ने अपेक्षित की है ना ही वह सम्भव है । सो प्राप्तियों की नकल से दिखावटी फल सी स्थिति होती है जिसमें रस नही होता ।
जीवन द्वारा मिलित स्थितियों के आदर से रस बनता है जिससे जीवन के प्राणधन की सेवा की जा सकती है ।
जीवन का वह रस सदा नवीन होगा । उसमें नकल ना रहेगी ।
Comments
Post a Comment