लीला दर्शन , तृषित
मैं लीला दर्शन उसे मानता हूं जब आप स्वयं को समेट लें , छिपा लें परन्तु वह ललित सरस लीला रूपी वर्षा घुमड़ती ही रहें । आप भीतर भी नयन मूंद लें और सहज ब्यार से खुलें पर्दे की तरह अन्तस् देखता रहें । आप गलित हो और वह ललित हो । आप नमित हो और वह वर्षित हो । आपने स्वयं को इतनी मधुता से छिपाया हो और वह आपकी गोद से उतर ना रही हो । ज्यों माँ नहीं चाहती कि उसका शिशु ना रोवें त्यों सहजतम दशा नहीं चाहती कि लीला पुहुप ( फूल ) झरें ... पर वह झरे और आप रोक ना सको । जब कोई स्वयं को प्रकट करें और किसी बलात् धक्का लगा कर प्रकट कर दिया जावें दोनों दशाओं में बहुत भेद होगा । युगल तृषित । कथित मनुष्यों को छोड़िये गिलहरी और तितलियों से पूछियेगा लीला में कैसे रहा जाता है ।
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