वेणी श्रृंगार , श्रीक जू ।
Please Do Not Share
आजु ... आज नवेली श्रीप्रिया किस भावना में तल्लीन ... ग्रीवा झूकि सी ... विशाल नयन सरोवर अर्द्धमुँदी ... रसिकनी की रस भरी लोचन में अथाह उमंग ... सुरत विलास की थकित श्रमित चिह्न गौरांगी को रसिक रस रँगीली कर तनिक लज्जा की पटाभरण ओढ़ा दी है ।
अपलक नेत्र से अपने ही सुदीर्घ वेणी को निहार रही ... स्निग्ध चिक्कन ... सखी की कसी हुई गूँथन अब शिथिल ... कुछ लट उरझ गये है झूमका की बूंदी में ...
वह निहारती रही वेणी की ओर ... और सघन श्यामल होती गयी वेणी... प्राण वल्लभ प्रतीत हो रहे थे और उनकी मानने से .. निकट बैठे हुये भीगी पर्यंक पर रसिक प्रियतम पुलकित हो उठे.... उन्हें और एक अवसर ...एक सादर निमंत्रण मिला ... ... ...
उनके आतुर नयन वेणी जू के मूल से परिक्रमा करते रुक गए अपने प्राण पोषिनी के झूमती झूमका के पास... श्रीप्रिया के कर्ण जो भी रसासव पिये ... अपने रस नागर के नामामृत ... गूंजने लगा ... और यह शीतल झोंका से ठिठुरने लगे... बिहारी जू ...ललितनागर जू ।
घूमती हुई वेणी रस वर्षिणी के अधर दल स्पर्श कर.. आह री ... अब तो बाँवरे प्यारे अधर रस सुधा पान को व्याकुल ... उनके नयन कांपते रहे और दुल्हनी के अधर से रस मदिरा के स्रोत ... जैसे जैसे रस लालसा की वृद्धि वैसे ही मधुर मदिय वर्षण ...
उमड़ घुमड़ ..हिय देश पर लिपटी बेणी तक ... श्यामघन के भ्रमर नयन पहुँचने से पूर्व ...अनुराग रस सिंधे की ललित अनुराग स्पंदित रस कलस छलक गये ..... मधुर मधुर सुरतिरंगीली रस की दान आस्वादन केलि विलास ... ... बलिहार री ...नित्य तृषित रस पिपासु उद्धाम रस बौछार से अघाते नहीं ... ... वरण ... वरण और प्रबल तीव्र होता है ललकविलास उनका ...
अब दरस भी मदमस्त गयंद चाल से नाभि की गम्भीरता में डुबकी लगाती बेणी के सहारे लिये ... रस सरोवर में मीन सी तैरती ... उछलती ... भीतर डुबकी लगाती सुरभित मदिर जीवन बूटी समेट प्राण पोषण करती ....
रस रूप लावण्य की सरोवर में भीगी गलित व्याकुल प्रियतम को अंक में भर .... और और मिले.... सुख रस आदानप्रदान की महोत्सव रसरंगाई में झूमते फूलते मरालमरालिनी
जानि जानि रुचि हिय की... और यह सरसावली सुरभित ब्यार और ब्यार सँग क्रीडित परस्पर श्रृंगार धराते ... नवीन रति केलि विलास की सम्भावना में सिहर उठते ... वें ।
जयजय श्रीश्यामाश्याम ।
Comments
Post a Comment