काम और प्रेम
प्रेम सच में रहस्य है सदा !
आकर्षण प्रेम नहीं पर वहीं
ही प्रेम माना जाता है
काम की ऊर्जा का ही विवर्धन या रुपान्तरण प्रेम है !
प्रेम शारीरिक भोग से परे है
पर वहीं ऊर्जा रुपान्तरित होती है
सो जब तक काम है ... प्रेम ना होगा
कह नहीं सकता खुलकर ...
काम का दमन होता है
पर रुपान्तरण होना चाहिये !
दमन विनाशक होता है ..
दमन कारी कभी अपने विरोध पात्र
को भुल नहीं पाता !!
दमन की ही नीति है कि सारी मानव
जाति के जहन में एक काम छिपा है
जो जितना विरोध किया ! उतना उलझा
कुछ बाबा पकड आये है ...
कारण दमन ...
दमन - विरोध भुलने नहीं देता खेचता है !
फंसी पडी है दुनिया ...
अगर काम का रूपान्तर ... शुद्धिकरण हो तो ही प्रेम प्रकट होगा . जिसके लिये भय या नफरत नहीं समझ चाहिये ...
वहीं पद्धति काम मुक्त करती है !
वरन् बडे बडे बाबा भय में है ...
स्त्री को छुते नहीं ...
पास नहीं आने देते ...
देखते नहीं ...
कारण भीतर का काम ना फुट पडे
सॉरी बट कह गया ...
प्रेम समस्त ऊर्जाओं की पराकाष्ठा है
और काम की ऊर्जा सृजनात्मक !
सोचें काम से सृष्टि हो गई ...
प्रेम तो विशुद्ध है कितना रहस्यात्मक
होगा !!!
आकर्षण और प्रेम में अंतर है
कि आकर्षण में कारण है
वही राग कहा जाता है
आकर्षण का विलोम विकर्षण
द्वेष कहलाता है !
आकर्षण में कारण है कम ज्यादा
हो सकता है ...
जैसे आज कोई चित्र सुन्दर है
आकर्षण होगा ...
कल रुखा पड जाये ...
फिका हो जाये उतार कर कुडा मान
लेंगें हम !! यें आकर्षण है ...
आकर्षण का ही पवित्र रूप प्रेम है ...
प्रेम ...
प्रेम में लेना नहीं ... देना है सब कुछ !
प्रेम में कारण नहीं बस भाव है ...
प्रेम में निखार होता है ...
विस्तार होता है ...
प्रेम को दोष समझ नहीं आते
प्रेम में कैसे भी मिलन की तडप है भले मिलन सर्वस्व ले जायें ...
प्रेम रूप गुण से ऊपर का भाव है ...
प्रेम दो असमत्व को एक समत्व करता है ...
और दो समत्व को भी एक समत्व !
आकर्षण में चेष्टा प्रयास हो सकता है ... जैसे सँजना-सँवरना ! प्रेम में चेष्टा भी नहीं ...
बस दो ऊर्जाओं का एक होना प्रेम है ...
सत्यजीत तृषित
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