आकर्षण और प्रेम
सत्यजीत तृषित:
आकर्षण और खिंचाव के पीछे का विज्ञान क्या है?
यह किसके जैसा है? यह लोहचुंबक होता है और यह आलपिन यहाँ पड़ी हो और लोहचुंबक ऐसे-ऐसे करें तो आलपिन ऊँचीनीची होती है या नहीं होती? होती है। लोहचुंबक पास में रखें तो आलपिन उसे चिपक जाती है। उस आलपिन में आसक्ति कहाँ से आई? उसी प्रकार इस शरीर में लोहचुंबक नाम का गुण है। क्योंकि अंदर इलेक्ट्रिकल बॉडी है, इसलिए उस बॉडी के आधार पर सारी इलेक्ट्रिसिटी हुई है। उससे शरीर में लोहचुंबक नाम का गुण उत्पन्न होता है, तब जहाँ खुद के परमाणु मिलते आएँ, वहाँ आकर्षण खड़ा होता है और दूसरों के साथ कुछ भी नहीं। उस आकर्षण को अपने लोग राग-द्वेष कहते हैं। कहेंगे, 'मेरी देह खिंचती है।' अरे, तेरी इच्छा नहीं तो देह क्यों खिंचती है? इसलिए तू कौन है वहाँ पर?!
हम देह से कहें, 'तू जाना मत', तब भी उठकर चलने लगता है। क्योंकि परमाणु का बना हुआ है न, परमाणु का खिंचाव है यह। मेल खाते परमाणु आएँ वहाँ यह देह खिंच जाती है। नहीं तो अपनी इच्छा न हो तब भी यह देह कैसे खिंच जाए। यह देह खिंच जाती है, उसे इस जगत् के लोग कहते हैं, 'मुझे इस पर बहुत राग है।' हम पूछें, 'अरे, तेरी इच्छा खिंचने की है?' तो वे कहेंगे, 'ना, मेरी इच्छा नहीं है, तब भी खिंच जाता है।' तो फिर यह राग नहीं है। यह तो आकर्षण का गुण है। पर ज्ञान न हो तब तक आकर्षण कहलाता नहीं है, क्योंकि उसके मन में तो ऐसा ही मानता है कि 'मैंने ही यह किया।' और यह 'ज्ञान' हो तो खुद सिर्फ जानता है कि देह आकर्षण से खिंची और मैंने कुछ किया नहीं। इसलिए यह देह खिंचती है न, वह देह क्रियाशील बनती है। यह सब परमाणु का ही आकर्षण है।
ये मन-वचन-काया आसक्त स्वभाव के हैं। आत्मा आसक्त स्वभाव का नहीं है। और यह देह आसक्त होता है, वह लोहचुंबक और आलपीन जैसा है। क्योंकि वह चाहे जैसा लोहचुंबक हो तब भी वह तांबे को नहीं खींचेगा। किसे खींचेगा वह? हाँ, सिर्फ लोहे को ही खींचेगा। पीतल हो तो नहीं खींचेगा। यानी स्वजातीय को ही खींचेगा। वैसे ही इसमें जो परमाणु है न अपनी बोडी में, वे लोहचुंबकवाले हैं। वे स्वजातीय को ही खींचते हैं। समान स्वभाववाले परमाणु खिंचते हैं। पागल पत्नी के साथ बनती है और समझदार बहन उसे बुलाती हो तब भी उसके साथ नहीं बनती। क्योंकि परमाणु नहीं मिलते हैं।
इसीलिए इस बेटे पर आसक्ति ही है खाली। परमाणु-परमाणु मेल खाते हैं। तीन परमाणु अपने और तीन परमाणु उसके, ऐसे परमाणु मेल खाएँ तब आसक्ति होती है। मेरे तीन और आपके चार हो तो कुछ भी लेना देना नहीं। यानी विज्ञान है यह सब तो।
सत्यजीत तृषित:
आकर्षण और प्रेम में अंतर है
कि आकर्षण में कारण है
वही राग कहा जाता है
आकर्षण का विलोम विकर्षण
द्वेष कहलाता है !
आकर्षण में कारण है कम ज्यादा
हो सकता है ...
जैसे आज कोई चित्र सुन्दर है
आकर्षण होगा ...
कल रुखा पड जाये ...
फिका हो जाये उतार कर कुडा मान
लेंगें हम !! यें आकर्षण है ...
आकर्षण का ही पवित्र रूप प्रेम है ...
प्रेम ...
प्रेम में लेना नहीं ... देना है सब कुछ !
प्रेम में कारण नहीं बस भाव है ...
प्रेम में निखार होता है ...
विस्तार होता है ...
प्रेम को दोष समझ नहीं आते
प्रेम में कैसे भी मिलन की तडप है भले मिलन सर्वस्व ले जायें ...
प्रेम रूप गुण से ऊपर का भाव है ...
प्रेम दो असमत्व को एक समत्व करता है ...
और दो समत्व को भी एक समत्व !
आकर्षण में चेष्टा प्रयास हो सकता है ... जैसे सँजना-सँवरना ! प्रेम में चेष्टा भी नहीं ...
बस दो ऊर्जाओं का एक होना प्रेम है ...
सत्यजीत तृषित
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