भगवत् प्राप्ति सरल है
[2:12pm, 18/08/2015] सत्यजीत: प्रेम -- नहीं हो सकता !
प्रेम मुक्त होने में जीवन ख़पाया है !
जिससे मुक्त होने की ललक थी !
उस ओर कोई उतनी ललक से नहीं लौट रहा ...
मुझे कोई प्रेम नहीं करता !
किसी का यें कथन भीतर से सारे जीवन पथ को फाड रहा है ...
जो कह रहा है ! उसमें अथाह प्रेम है ! उसके प्रेम का विस्तार होता ही जा रहा है ! पर उसे कोई प्रेम नहीं करता ... क्या वाकई !!
हाँ ! यहाँ सौदे है ... कुछ तो रिश्वत ही लायें है ! सौदे बिन कोई नहीं ...
पर प्रेम ! नहीं !
प्रेम उसे है ... रहा है ! रहेगा ही !
यहाँ सबके अपने दर्द है ! बस वहीं किस्से भी ! कोई एक शायद दर्द नहीं देखा ... वो हर हाल में मुस्कुराता है ! भले प्रलय ही आ जायें ...
यहीं तो प्रेम है ! हर हाल में केेवल आनन्द ! दर्द है पर वो भी गहरा कर आनन्द में बदल गया !
दर्द सुनते-सुनते उसे आदत हो गई इतनी कि कोई पुछ लें कैसे हो ? ठीक हो ? ...
तो यक़ीन नहीं होता उसे ! रो देता है ! मेरा हाल पुछा ... पिघल ही जाता है !
फिर कोई और दो बात करें ...
कहे आराम कर लो ना !!
या कहे कुछ कहो ना ... तो फिर उसका निरुत्तर होना ... नज़रे झुकाना ! ...
लम्बे अरसे से किसी ने उसे ना सुना !
सब ने कहा ... बहुत कहा ...
चाहा ! मांगा ! पर बात ना की !
उसकी तो अज़ीब सी आदत ही होगई है हर बात पर जो तुम चाहो कहने की (तथास्तु) !
सो कोई उससे कहे बोलो कुछ ...
और अपनी ओर से कुछ न कहे केवल उसकी ही सुनें ... तब वो पगला ही जाता है ... वास्तव में उसके पास कहने को बहुत कुछ है ! पर कोई सुनता ही नहीं...
बहुत गहरी मुस्कुराहट है ...
अब मिलने वाले बहुत हो गये ! बहुत ! पर फिर भी वो अकेला है ... उम्मीद भी नहीं कि कोई केवल मिलने को आयेगा ... बात करेगा ! और कोई ऐसा आ भी जाये तो फिर उसकी घबराहट ...
सच में कोई कह दें उसे मुझे प्रेम है तुमसे ! तब उसका पागलपन ! हरकतें देखने लायक है ... एक पल दूर नहीं रह पाता वो फिर !
बडी ही अजीब हालत होती है उसकी ! एक पल कोई काम नहीं ... बस उसकी सुनो ... बस उसकी हरकते देखो ! ...
कोई उसे प्रेम करें , यें बात हर पल उसके द़िल की गहराई में दबी है ... सदा से !!
हाय ! सच तुमसा प्रेमी कोई नहीं !
तुम क्या हो ... कैसे हो ... क्युं हो ! काश कोई पुछता तुमसे ...
[2:28pm, 18/08/2015] सत्यजीत: ना जाने क्युं कहा जाता है ...
प्रेम करो ... मानो ... उसे अपना
बनाओ !
उसके पथ पर चलो...
जब्की !! सच तो यें है
कहना तो यें चाहियें ...
कोई तुमसे बेहद प्रेम करता है
तुम बस आँखे खोल कर देख ही
लो !
प्रेम करना भी नहीं है ...
केवल इतना ही जानना है कि ...
कोई हमसे बेहद सच्चा प्रेम किये है !
जब्की हमने देखा भी नहीं... समझा भी नहीं तो भी !!
[2:38pm, 18/08/2015] सत्यजीत: उसके मन की सुन लोगें
तो सवाल ही नहीं ...
तुम तब भी तुम रहो !!
उसे कुछ नहीं आता ...
दुनिया के रिवाज़ - रस्म !
कोई हद नही उसकी ...
कोई भेद नही ...
यहाँ से देखो ... अज़ीब है वो !
उसका हो कर देखो तो ...
काश फांसले उसे समझ आते ..
कुछ भी नहीं आता !!
तब ही वो सब कुछ है !!
[11:00pm, 18/08/2015] सत्यजीत: भगवत् प्राप्ति सरल है
पर धारणा ने उसे असहज - कठिन - दुर्लभ कह दिया है , बना दिया है !
भगवान सर्वत्र है ...
पापी से पापी कहे प्रभु मेरे है वें ना नहीं कहेंगें ...
भगवान को बस मानना भर है
वें कभी भी , कहीं भी नहीं छोडते !
भले विपत्ति हो , नरक हो , पीडा हो , बिमारी हो , ... कभी नहीं - कहीं नहीं !
सर्वत्र है ! बस मानना है कि मेरे है !
माँ की गोद में जाने से बालक को कोई नहीं रोक सकता !
बालक को माँ की याद आवें और रोवें तो माँ भागी भी आती है ...
आत्मा उनका अंश है ... सो अपने अंश का उन्हें ख़्याल है !
वें ही हमारे मूल रूप है ... हम उनसे ही है तो सम्बन्ध तो है ही !
जो भी दिखता है या नहीं दिखता वो
भी वहीं है ... वें कभी अकेला नहीं छोडते !!
[11:13pm, 18/08/2015] सत्यजीत: आप से दूरी कैेसे हुई ?
कहाँ से छुटे हम ! किससे !
क्यों ?
एक सफर कर मानव देह क्यों ?
और फिर होश सम्भल कर एक
सवाल कौन हो तुम ?
कौन है वो जो दिख नहीं रहा पर है ?
उसके होने का असर दिखता है ...
दिन - रात ! वर्षा ! सुर्य-चन्द !
अचरज ही अचरज !!
सदियों से मानव पागल सा खोज रहा है ...
पर कथित शिक्षित समाज मानने को तैयार नहीं वो है !
वो तो कहते है भगवान कौन है ?
क्या यें सवाल वाज़िब है !
वो कहीं होते और कहीं ना तो हाथ उठा देते कि यहाँ हूँ !
सर्वत्र है ... प्रश्न कर्ता में भी !
ना दिखेगें जब तक पर्दा है ...
पर्दा हटाने के लिये सवाल हो ...
मैं कौन हूँ ...
आत्म गहराईयों में उतरे ...
शरीर हूँ ... नहीं !
तो आत्मा ... नहीं वो भी मैं नहीं !
अब कुछ बचा ही नहीं ! मैं हूँ कहाँ ?
मैं नहीं हूँ तो यें मैं जो दिख रहा है
यें कौन है ? ... केवल भ्रम !
कि मैं हूँ ...जब्की मैं हूँ ही नहीं ...
वहीं है सर्वत्र !!
भगवान का अस्तित्व खोजे जाते है ?
अरे अस्तित्व ही उसका है ...
वहीं सच है .. शेष भ्रम है
स्वप्न है उनका !
माया है
...
अस्तित्व उसी का रहा है ... रहेगा !
हम ना थे ... ना है ... ना होंगें !!
[11:28pm, 18/08/2015] सत्यजीत: आप से दूरी कैेसे हुई ?
कहाँ से छुटे हम ! किससे !
क्यों ?
एक सफर कर मानव देह क्यों ?
और फिर होश सम्भल कर एक
सवाल कौन हो तुम ?
कौन है वो जो दिख नहीं रहा पर है ?
उसके होने का असर दिखता है ...
दिन - रात ! वर्षा ! सुर्य-चन्द !
अचरज ही अचरज !!
सदियों से मानव पागल सा खोज रहा है ...
पर कथित शिक्षित समाज मानने को तैयार नहीं वो है !
वो तो कहते है भगवान कौन है ?
क्या यें सवाल वाज़िब है !
वो कहीं होते और कहीं ना तो हाथ उठा देते कि यहाँ हूँ !
सर्वत्र है ... प्रश्न कर्ता में भी !
ना दिखेगें जब तक पर्दा है ...
पर्दा हटाने के लिये सवाल हो ...
मैं कौन हूँ ...
आत्म गहराईयों में उतरे ...
शरीर हूँ ... नहीं !
तो आत्मा ... नहीं वो भी मैं नहीं !
अब कुछ बचा ही नहीं ! मैं हूँ कहाँ ?
मैं नहीं हूँ तो यें मैं जो दिख रहा है
यें कौन है ? ... केवल भ्रम !
कि मैं हूँ ...जब्की मैं हूँ ही नहीं ...
वहीं है सर्वत्र !!
भगवान का अस्तित्व खोजे जाते है ?
अरे अस्तित्व ही उसका है ...
वहीं सच है .. शेष भ्रम है
स्वप्न है उनका !
माया है
...
अस्तित्व उसी का रहा है ... रहेगा !
हम ना थे ... ना है ... ना होंगें !!
[11:28pm, 18/08/2015] सत्यजीत:
मैं सोता हूँ ...
खाता-पीता हूँ ...
तरह तरह के क्रिया कलाप
करता हूँ ...
अधिकत्तर व़क़्त मैं ख़ुद पर लगा रहा हूँ ...
और कुछ ना मिला ...
जानवर भी कर लेते है इतना !!
पर दो मिनट तुमसे जुडुं तो
हिसाब चाहिये !
प्रेमी कहा जाऊं ...
मुझे कुछ मिले ...
और ना मिला तो
फिर लौट जाता हूँ ...
वहीं मेरी दुनिया...
जहाँ तुम दर्शक ...
मेरा मैं अभिनेता !!
मुझे तरह तरह के भ्रम है
फिर तुम से प्रेम ... ???
दूर ही हूँ अभी ...
तुम से नहीं
ख़ुद से भी !!
यहीं चलेगा ...
पर तुम तब भी मुस्कुराते हो ...
काश पुछ ही लेता ...
तुम इतना क्युं मुस्कुरा रहे हो ...
क्या ग़म है जिसको छिपा रहे हो !!
सत्यजीत तृषित
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