मन और निहारना कैसा हो
मन भजन भक्ति में लग नहीं रहा
भटक जाता है ... आम समस्या है ...
"छोटी-छोटी चीजों में प्रयोग करें कि मन बीच में न आए। आप एक फूल को देखते हैं--तब आप सिर्फ देखें। मत कहें 'सुंदर', 'असुंदर'। कुछ मत कहें। शब्दों को बीच में मत लाएं, कोई शब्द उपयोग न करें। सिर्फ देखें। मन बड़ा व्याकुल, बड़ा बेचैन हो जाएगा। मन चाहेगा कुछ कहना। आप मन को कह दें: 'शांत रहो, मुझे देखने दो, मैं सिर्फ देखूंगा।'
शुरुआत में कठिनाई आएगी, लेकिन ऐसी चीजों से शुरू करें जिनसे आप ज्यादा जुड़े नहीं हैं।तो ऐसी चीजों को देखें जो तटस्थ हैं--चट्टान, फूल, वृक्ष, सूर्योदय, उड़ता हुआ पक्षी, आकाश में घूमता हुआ बादल। सिर्फ ऐसी चीजों को देखें जिनसे आप ज्यादा जुड़े हुए नहीं हैं, जिनके प्रति आप अनासक्त रह सकें, जिनके प्रति आप तटस्थ रह सकें। तटस्थ चीजों से शुरू करें और फिर भावुक स्थितियों की ओर बढ़ें।
फिर भगवान ... जिन्होंने सारा सौन्दर्य गढा | उन्हें निहारें , पग देखें तो पग ही देखे
मन कहे मुख देख लूं ... पीडा हो सह लें चरणों में ही सम्पुर्ण छवी तलाशें ...
ऐसे नित्य एक अंग में ही पूर्ण दर्शन करें ...
कभी मुख पर अटक जायें ... नेत्र बहते रहे पर हिले ना ... ना शब्द कहें ...
बस निहारते रहे ... करिये कुछ थिरता बढेगी "
जय श्री राधे
कृष्णमय रात्रि
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