कामना

चुंकि कामना (अरमान) रहित होता कठिन है ... पर कामना ना रहे तो मन की स्थिरता भगवत् अनुराग में स्वत: हो ! पर कामना रहित होना कठिन है ... मन हिलता है और हर बार नई कामना जन्म लेती है ! देखा जाये तो जीवन में व्यक्ति नें क्या - क्या अरमान पाला वो गिन नहीं सकता !
जिसने जितने कम ख़्वाब देखे वो उतना सुखद जी पाया !!
जिसने कुछ ना देखा ... वहीं प्रेमी है या साधक ! क्योंकि जीवन उसका भगवत् अनुरुप है ! कोई कामना नहीं सो सदैव आनन्द है ! जो भी मिला ज्यादा लगेगा ... कृपा लगेगी ! क्योंकि चाह नहीं थी ! कृपा वहीं होती है जहाँ कामना नहीं ... बिन कृपा अनुभुत् किये प्रभु जी अनुभुत नहीं हो सकते ! सडक पर एक रोटी खाने वाले को कृपा अनुभुत हो सकती है क्योंकि उसे उस रोटी की भी चाह नहीं थी ! पर 7स्टार होटल में हजारों का खाने पीने पर भी भुख बनी रहती है ! यहाँ उम्मीदें इतनी है कि बहु व्यंजन पाकर भी कृपा का पता ही नहीं ! ...

अरमान तो अरमान ही होता है और अरमान का अर्थ है ......
वह जो हमें तो समाप्त करदे लेकीन स्वयं बना रहे ,

अरमान एक दिन आपका जीवन निगल जायेगा ... और पता भी ना चलेगा ! वो ही माया मय जगत में विजयी होता है ... जीव नही रहता अरमान रह जाते है ...
अपने अरमान (कामना) प्रभु की ओर करें ... प्यास संसार से हटा प्रभु में लगा लें ... आप ना रहेंगें और वो निर्मल प्यास रह जायें ... बस तब सरल है ! भगवत् प्राप्ति !
संसार में कामना सर्प की भांती है वहीं प्रभु में अनुराग बन सकती है और मोतियों के हार में बदल सकती है ...
बुद्ध कहते हैं ......
कामना दुस्पुर होती हैं अर्थात कामना वह जो कभी समाप्त न हो ।
अरमान जब मनोरंजन का साधन सा दिखे तो समझना मार्ग सही है और .....
अरमान जब माथे के पसीनें को सूखनें न दे तो समझना , मार्ग नरक की ओर जा रहा है ॥
अरमान एक तरफ प्रभु की ओर जाता है और ....
दूसरी ओर नरक की ओर , आप को कहाँ जाना है ?
सत्यजीत "तृषित"

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