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Showing posts from January, 2017

श्री प्रिया छुपन लीला ... तृषित

सखी वें आ रहे ... छिप जाओ । *आ ... आ ... आ रहे !! ... छिप ... छिप ... हाय ! क्यों सखी ...* सखी उन्हें व्याकुल होना होगा तभी वें समझेंगे तुम्हारे प्रेम को ... हम ऐसे कैसे मिलने दे तुम्हें ... ??? तनिक कुछ मूल्य तो ल...

एक भाव से द्विधा कैसे होते युगल , तृषित युगल भाव वार्ता

युगल का मन एक है , हृदय एक है , रस भाव एक है , दोनों समत्व रस एक समय धारण करते है , उसे विपरीत सखी करती है ... सहचरी । वरन समान समय पिपासा हो तो निदान कैसे हो । एक पिपासा एक निदान । अतः युगल...

प्रफुल्ल रमणा

प्रफुल्ल रमणा नित सजत प्यारी रिझावन को नित दूलहु नव रूप दमकत प्रिया नैन हर्षावन को ***    ***    *** नित सजत बिहारी निरखन बिहारिणी जु । निहारत बाट पलकन उतार धर दीनी ज्यों । गिरत बि...

श्री प्रिया की पलकें ... तृषित

*श्री प्रिया की पलकें* ... *तृषित* श्यामल रस घन को समेटते सजल अथाह पिपासा की मधुर उर्मियों को पिए हुए श्री प्रिया के नयन युगल की सहचरियाँ है यह पलकें ... रस घन की लावण्यता और उनके अधर...

तृषित कथा क्यों

कारण -- युगल गान रस से सजीव जीवन अनुभूति लोभ -- अधिकतम रस डुबकियाँ दक्षिणा -- जिसे हृदय छुये ... भगवत नाम स्वार्थ -- विष जगत और विषय से अधिकतम छुटकारा हो कामना -- किशोरी तेरे चरणन की रज प...

कृपा रूपी वर्षा अखंड है , तृषित

वर्षा हो रही हो ... मोर नाच रहे हो ... प्रकृति झूम रही हो और फिर कोई सिद्ध आएं उसे उसके संगी आदेश करें , वर्षा रोक दो । वह कोई साधन करें , वर्षा रुक जाएं ... अब वर्षा साधन से रुकी या वर्षा के...

भगवान के विषय में कल्पना नहीँ हो सकती है , तृषित

कल्पना संसार की हो सकती है ... भगवान के संदर्भ में कल्पना का अस्तित्व नहीँ है ...  क्यों ?? वह सत है , असत नहीँ । भगवान की अनुभूति का स्पर्श ही वास्तविकता पर लें जाता है । भगवान और कल्...

जीवार्थ से आत्मार्थ सृष्टि तक , तृषित

हमारे प्रभु जी को दो तरह से सृष्टि करनी होती है । जीवार्थ और आत्मार्थ । जीवार्थ सभी भुवन - लोक आदि है । आत्मार्थ उनकी स्व रस की सृष्टि है । आत्मार्थ है वह वृन्दावनीय निकुंज जह...