श्री प्रिया की पलकें ... तृषित
*श्री प्रिया की पलकें* ... *तृषित*
श्यामल रस घन को समेटते सजल अथाह पिपासा की मधुर उर्मियों को पिए हुए श्री प्रिया के नयन युगल की सहचरियाँ है यह पलकें ...
रस घन की लावण्यता और उनके अधर नयन का संयुक्त दर्शन करते ही नयनों की लज्जा को तत्क्षण बता कर पुनः व्यथित पिपासु नयनोँ का पट है यह पलकें ...
पिय स्मरण के स्पंदन से सजल नयन के रस झारी को समेटने के लिये गिरती यह नीलिमा समेटी चद्दर जैसे प्रियतम के सौंदर्य को भीतर ही उतारना चाहती हो ... नित्य मिलन की विश्राम भूमि है यह पलकें ...
नागर की सौरभ से तिलमिलाए अंग को ना समेट पाने से संचालन खो कर बारबार गिरती और उठती कुछ कह कर भी न कहती श्रीप्रिया के उन्माद की तरँग को किसी परिभाषा से परे करते हुए काँपते हुए सागर की तलाश बन जाती है यह पलकें ...
नागर जु की दृष्टि से चोरी करती हुई प्रिया के नैनो में सिमटी नवल अधर रस पिपासिनी की लज्जा जो नैनों के आवरण को भंग करने की यथेष्ठ कामना बन गई हो यह पलकें ...
लज्जित नेत्रों में समेटे माधुर्य में नागर उपस्थिति का लाभ उठाने को सजल नयनों की अनसुनी कर उन्हें अनवरत नागर सौरभ पान के लिये उन्मादित करती भाग गई नयनों की एक सखी है यह पलकें ...
प्रियतम की प्रतीक्षा को प्रियतम की उपस्थिति बनाने के लिये रसीली जु को हृदय में उनका नित्य दर्शन कराने के लिये शीतल मेघ लता बन जाती है यह पलकेँ ...
श्री प्रिया प्रियतम के नित संग में स्वयं को असार समझ सजल नयनों का श्रृंगार बन ऊपर उठी श्यामल ओढ़नी थामें तपस्विनी है यह पलकें ...
नेत्रों का निकटतम कृष्ण सुख है यह पलकें इस पर जो काले नन्हें बाल है वह प्रियतम की मधुरतम स्मृतियों से प्रिया को आह्लादित करता है और प्रियतम के निकटतम छुअन स्पंदन को उनमें नित्य पिरोता जाता है । अस्पर्श में स्पर्श सुख प्रदायिनी है पलकें ...
शयमसुन्दर की प्रतीक्षा काल में व्यथित श्यामा को शीतल मंद ब्यार से स्वप्न रस में मिलन लोभ दिखा विश्राम प्रदायिनी है यह पलकें ...
भाव मिलन में कभी शीघ्र बाह्य नागर सौरभ से भाग गई नयन कमल पर बैठी तितली है यह पलकें ...
वहीँ भाव रस गाढ़ता में डूबी प्रिया को बाह्य नागर अनुभूति से मान पूर्वक मानिनी हो नागर को पुनः-पुनः सताती हुई उनके रस को व्याकुलित कर गहन करती है यह पलकें ...
नागर जु की दृष्टि की लज्जा और प्रिया मुख दर्शन लालसा को समझ स्व दर्शन सुख को प्रिया मानस में उतार नयनों पर गिर कर प्रियतम को गहन प्रिया दर्शन सुख को प्रदान करने वाली महाभाविनि है यह प्रिया की पलकें ...
"तृषित"
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