एक भाव से द्विधा कैसे होते युगल , तृषित युगल भाव वार्ता
युगल का मन एक है , हृदय एक है , रस भाव एक है , दोनों समत्व रस एक समय धारण करते है ,
उसे विपरीत सखी करती है ... सहचरी । वरन समान समय पिपासा हो तो निदान कैसे हो । एक पिपासा एक निदान । अतः युगल रस का बीज उनके मिलन की द्रष्टा तत्व यानी सखी है ।
सखी भाव -- मै महाभाव रसराज की सेवा सहचरी हूँ । मुझमे दोनों के हृदय के तार जुड़े है ।
क्योंकि तत-सुखी युगल एक हृदय , एक रस , एक मन , एक भाव , एक रूप , एक रस होने पर ,द्विधा वृत्ति कैसे लायेंगे ।
विपरीत वृत्ति न हो अर्थात एक रस एक प्रेम न हो । या एक प्यास , एक निदान न हो दोनों प्यास हो जाएं या दोनों निदान हो जाएं तो केलि कैसे होगी । श्यामा हिय में श्यामसुंदर के हिय की बात है और श्यामसुंदर के हिय में श्यामा के हिय की बात , जब बात ही एक है तो केलि कैसे होगी अतः तत्सुख भाव केलि समय स्वसुख ही लगता है परन्तु उससे पुष्टि तत हृदय यानि परस्पर हृदय को होती है । क्षमा , अन्यथा न लीजियेगा । तृषित
योगमाया का यही प्रभाव है ... स्वरूप विस्मृति जिससे सहज रस आदान प्रदान हो । दोनों का दिव्य रस प्रभाव और रूप प्रभाव वहाँ होकर भी दोनों को परस्पर सुख में डूबा सकें ।
जैसे - मान लीजिये श्यामा जु पुष्प चुन रही है
परन्तु सुगन्ध श्यामसुंदर को आ रही है , जहां वह है ...
केलि ।
एक ही खेल के दो पाले - परस्पर सुख हेतु ।
रसराज और महाभाव
श्याम सुंदर के प्रेम का श्यामा भाव रूप का होना ।
और श्यामा के रूप का शयमसुन्दर के हिय भाव से गहन होना ही केलि है ।
श्यामसुंदर में नित श्यामा की माधुर्यता और
श्यामा में नित श्याम हिय से विकसित रूप की नित्य आभा का विकास होते रहना नित्य केलि है ।
यह सब बहुत गहन है ।
श्यामसुंदर के हिय नित्य वर्द्धित श्यामा के रूप का चिंतन है ...
और जो रूप उनके हिय में छिपा है वह प्रकट होना ही श्यामा का होना है ।
श्यामा के भाव समूह सार सिंधु का दृश्य रूप ही मनहर है
श्यामा के हिय की कोमलत्व से ही श्यामसुंदर का अणु अणु प्रस्फुरित होता है ।
परस्पर विकसित यह ... दो है ही नही ।
जगत में एक और पुष्प दूसरी और शुष्कता है । वहाँ एक नाल दोनों और यह पुष्प ।
एक बत्ती दोनों और से प्रकाशित जिनके बीच का घृत संयुक्त भाव ईंधन है ।
अर्थात किशोरी के उज्जव भाव हेतु उसके पात्र श्यामसुंदर अति कोमल खिल रहे ।
श्यामसुंदर के भाव रूप की छब ही गहन हेतु हो श्यामा ।
श्यामसुंदर के नेत्र के सौंदर्य का नाम राधा ।
श्यामा के हिय के गूढ़तम रस का नाम मोहन ।
अनन्यता यही है कि श्यामसुंदर की सेवा का सुख किशोरी हिय में होता है प्रेम दान में प्रेम पात्र का सुख । यह जगत में असम्भव है ।
"प्रिय पौंछत पटपीत सौ प्रिया कपोलन पीक
" प्यारी पौंछत प्रिय के अधरन अंजन लीक"
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