कोई तृषित जीव नित्य युगल रस नही छोड़ सकता है

युगल रस से जो रोकते या जिनका मन होता रोकने का वह कमल और कीचड़ में भेद समझ जाए बस ।

युगल का मिलन पुष्प में सुगन्ध का मिलन है
युगल का मिलन जल में शीतलता का मिलन है
युगल का मिलन रस में मधुरता का मिलन है
युगल का मिलन जड़ चेतन का मिलन है
क्या यह गलत है ... युगल रस को जीवन से निकालने पर आप एक मशीन हो जिसे जलाने के अलावा नष्ट का कोई उपाय नहीँ ,

आत्मा को परमात्मा की प्यास , दोनों नहीँ दीखते , दिखती एक चीज़ देह (एक पिंजरा) ... जो नहीँ दीखता उसे देखने के अपना पिंजरा आप ही तोड़ना है ।
आत्मा को परमात्मा की तलाश है ... और हमारी तो आत्मा ही खो गई । --- तृषित ---

कथित रस पथिक मुझे आये दिन रोक रस विच्छेद करते है , स्वभाविक मौन से पहले रुकना मुझे ठीक नही लगता । और पुष्प में सुगन्ध के मिलन को कहना पाप नही है , जल में शीतलता की बात करना गलत नही है । वैसे ही प्रियालाल है ... ...  जो उन्हें दो देह समझते है वें रुके , मुझे क्यों रोका जाता । दूध की धवलता न रही तो युगल वियोग में स्वतः प्राण विस्फोट होगा ही । नेत्र जहां देखते है वह एक ही दीखते है ... मुझमे भी दो चीज़ है देह और आत्मा । अगर यह भी गलत तो हमें स्वयं के प्रति कुंठा क्यों नहीँ ।
रोकने के लिये जहाँ में बहुत चीज है उन कथित समाजो को रोकिये जो लिखित वेद और पुराण से कह कर साकरा राम कृष्ण को कल्पना कहते है , और भोले जनमानस को बनावटी बातों से गुमराह करते है ।
श्री कृष्ण के प्रति काम भाव के साधक भी उन्हें प्रियाजी
का प्रेम जान प्रियाप्रियतम् की चाह रहित सेवा कर रहे है । मेरे द्वारा कभी किसी में भगवत प्रेम के स्थान पर भगवत काम भी उत्पन्न हुआ तो मै रुक जाऊँगा ... !!
निर्मल से निर्मल काम निर्गुन प्रेम को सगुण कर देता है ।
सखी के हृदय में आई सेवा भावना भी स्वकामना नहीँ , वह युगल हृदय के सौरभ से खिलती फुलवारी है । चाह और काम शुन्य चित से युगल रस परम् विशुद्ध ही दर्शन में आता है । - तृषित । प्यास की कहानी में विराम रस से ही सम्भव ।
युगल रस शुन्य तृषित नही हो सकता  बेहतर ... हो । भगवान शिव कृपा कर जगतलीला को विराम और मुझे युगल विश्राम दे ।
मिलन की पूजा है हंमारे धर्म में कोई भी शिव मंदिर देखिये ...
आप भी यही चाहते ... मौन से पहले मौन । स्वभाविक मौन तो चाहिये ... मौन से ही रस गाढ़ता सम्भव ।
पर जबरन क्यों ... जब वाणी स्तम्भित हो और ...

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