भगवान के विषय में कल्पना नहीँ हो सकती है , तृषित

कल्पना संसार की हो सकती है ... भगवान के संदर्भ में कल्पना का अस्तित्व नहीँ है ...  क्यों ??
वह सत है , असत नहीँ ।
भगवान की अनुभूति का स्पर्श ही वास्तविकता पर लें जाता है ।
भगवान और कल्पना का कभी संग नही हो सकता क्योंकि असत की सत्ता भी भगवान के स्पर्श से सत्य हो जाती है ।
भगवान के लिये की हुई कल्पना कहती है कि कही न कही कोई चाह या इच्छा है । परंतु भगवत सम्बन्ध होते ही वह कल्पना सत्य हो जाती है क्योंकि भोला मानस भले ही स्व इच्छा का त्याग न कर कल्पना कर लें परन्तु भगवान स्वरूप का त्याग कर कल्पना को सत्य करने का सामर्थ्य रख उस कल्पना से भी सत्य निकाल कर उसका उद्धार कर सकते है ।
यह बात ऐसे स्वीकार नहीँ होगी ...
रावण ने राम ईश्वर है या नहीँ यह जांचने को मायामृग भेजा । ईश्वर है तो माया मृग के पीछे जाएंगे नही और वही संग्राम कर मैं मुक्त हो जाऊँगा यह उसकी भावना रही ।
राम ने उसकी भावना जानकर ईश्वर होते हुए भी नर तनु की सिद्धि के लिये जानकर लीला की , जिससे रावण को विश्वास हो गया यह मानव है , ईश्वर होते तो मृग के पीछे नही जाते । भगवान ईश्वर है परंतु फिर भी मृग के पीछे गये । रावण की आंतरिक भावना राम से छिपी नहीँ है । और राम की लीला रावण के सामर्थ्य से परे है । सारी लीला रावण की भावना से हुई और वह सिद्ध होता गया भगवान सामान्य मानव रूप प्रकट करते गये , क्योंकि भगवान मानव रहकर ही उसका उद्धार कर सकते थे ब्रह्मा जी के वरदान के निमित्त । रावण के दरबार में देव याचक बन खड़े रहते , तो मानव तो उसे क्या मारेंगे यह जान उसने यह वर चाहा था कि मानव तो हमारा भोजन है उनका कहां सामर्थ्य । रावण के वरदान अर्थात कल्पना की सिद्धि करते हुये राम ने ईश्वरत्व को प्रकट न कर जानकर मानव रूप से उसका उद्धार किया । वरन भगवान जानते थे मैंने सोने के मृग की सृष्टि की या नहीँ पर भागे ... !!
तो भगवान कल्पना को कल्पना नही रहने देते उसे सत्य लीला रूप दे देते है ।
भक्त चित्त कभी भगवत विषयक कल्पना नहीँ कर सकता , क्योंकि शरणागति पर मन भी शरणागत है । मन उनके ही अनुरूप गमन करता है और भगवान की भावना में सत की सत्ता है , भगवान असत का चिंतन नहीँ कर सकते है । क्योंकि भगवान स्वयं सत्य है । -- तृषित

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