कृपा रूपी वर्षा अखंड है , तृषित
वर्षा हो रही हो ... मोर नाच रहे हो ... प्रकृति झूम रही हो और फिर कोई सिद्ध आएं उसे उसके संगी आदेश करें , वर्षा रोक दो । वह कोई साधन करें , वर्षा रुक जाएं ... अब वर्षा साधन से रुकी या वर्षा के भीतर कोई खेल था यह कोई न जाने ।
सब सिद्ध की वाह वाही करें ... पुनः विशाल यज्ञ का आयोजन हो । क्यों वर्षा हेतु । वही सब साधक सिद्ध वर्षा के लिये यज्ञ करें , जिसे रोक कर यज्ञ कर रहे है ।
9 दिन बाद पूर्णाहुति के समय वर्षा होने लगें । सब आनन्दित हो । सिद्ध की महिमा और गहरी हो जाए ।
कृपा रूपी वर्षा अखंड अनन्त बह रही है ... चाह रूपी स्वांग से वह अदृश्य हो जाती है । और सभी चाहों की पूर्णाहुति होते ही कृपा रूपी वर्षा सदृश्य होती है । कुछ भोले मानस इस कृपा वर्षा को कर्म फल समझते है । कृपा रूपी वर्षा स्वयं स्वीकार करती है हाँ मै कर्म फल हूँ क्योंकि जिनकी दृष्टि से कृपा रूपी वर्षा हो रही है ... वह अति करुण और एक मात्र कर्ता होकर कर्तत्व से परे है ।
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