लिंग देह , तृषित

निर्मल मन की प्रेरणा को स्वीकार करने पर निर्मलत्व की भावना के अंकुर छू पाते है ।
वरन लिंग देह के तत्व में समावेश होने पर द्वितीय स्थिति रहती ही नहीँ । यहीँ अंतःकरण शरणागत नही हो पाता है । निराकार अवस्था लिंग देह की निराकारता है , मन का निर्गुणत्व है । वहीँ भाव देह उसी लिंग देह को विशुद्ध सत्व से सहज स्वरूप में पाने की भगवत कृपा से पोषित भावना का परिणाम है ।

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