श्री रसोपासना तिलक

🌺श्रीमन्नित्यनिकुंजविहारिणे नमः।
  श्री स्वामी हरिदासोविजयतेतराम्।।🌺

     🌻श्री रसोपासना तिलक🌻

              🌼सम्पादक🌼

🌺श्री अलबेलीशरण प्रो• गोविन्द शर्मा जी🌺
   
               संख्या क्रम :-२४
🌺इसी हेतु अपनी जोड़ी की नित्य एकरसता को दर्शाते हुए श्रीस्वामी जी ने संकेत किया- *प्रथम हूँ हुती अबहूँ आगे हूँ रहिहै न टरिहै तैसें*
🌺यह जोड़ी पहले भी ऐसे ही रसबिलास में मग्न-तत्पर थी, अब भी इसी रस केलि में परायण है और आगे भी निरन्तर-एकरस इसी रसबिहार में तत्पर-तत्लीन रहेगी। जैसे और उपासकों के युगलस्वरूपों के रस-विलास में मिलन-बिछुडन, विरह, भ्रम, आलस्य, मान आदि अन्य भावों का संचरण है, उनका विहार नित्य-एकरस नही है, वे उस रस-स्वरूप से टल जाते हैं; ऐसे ये टलेंगे नहीं, न ही बिछुड़न, विरह, भ्रम, आलस्य, मान आदि ही सतायेगा।
🌺अथवा इस पदांश में तन-मन की एकता को दर्शाते हैं- पहले मन में भी भावों द्वारा इसी रस का विहरन था, अब तन में प्रकट रूप से भी इसी रसानुरूप रमण है और आगे भी ऐसी ही तन-मन से एक संग एकरस क्रीड़ा रहेगी। अन्य युगलस्वरूपों में तन-मन की एकरसता होती नहीं है। कहीं तन से मिलन, कहीं मन से, कहीं दोनो से है। हमारे युगल इस सरस रसभीने स्वरूप से टलेंगे नहीं। इनका तो नित्यविहार के सेवन का ही दृढ़ प्रण है। इनका तो अंजन-मंजन, आहार-विहार आदि सब कुछ निरवधि नित्यविहार ही है। इसी हेतु श्री स्वामी जी के रसिक उपासकों ने एकरस रस को ही संज्ञा दी है। उनके मत में इस रस के अलावा अन्य सब रस नीरस, क्षारवत् और बातवत् , अर्थात् कहना मात्र के रस हैं। श्रीस्वामी ललितकिसोरी देव जी कहते हैं :-
🌷 *सबही कहत बिहार कौं, कहैं बिहार धौं कौन।*
🌷 *रतिपति भोगी जुगलबर, हम सेवत हैं तौन।।*
🌷 *नाना रस सबही कहैं, इक रस कहै न कोइ।*
🌷 *मनमथ सुखद बिहार कौं, कहैं दास हरि सोइ।।*
🌷 *इक रस बिन जे रस कहे, सो रस नीरस जानि।*
🌷 *श्री हरिदासी एक रस जहाँ, काम केलि रस खानि।।*
🌺नित्य एक रस-सुख बिना अन्य सभी रसों के सुख बरात के समान हैं-
🌹 *दुलह श्रीहरिदास हैं, सबही रसिक बरात।*
🌹 *अंग संग बिलसत केलि सुख, महा प्रेम रंग रात।।*
🌹 *रस सिंगार कहि एकरस, दूजौ दरसै नाहिं।*
🌹 *तन मन प्राननि एकता, हम सुमिरत हैं ताहि।।*
            _श्रीस्वामी ललितकिसोरी देव जी_
🌺जहाँ भूषण भी विघ्नकारक दूषणवत् हैं और अंजन-मंजन की भी सम्हाल नहीं है, जिसमें अंजन-मंजन और भूषण एकमात्र विहार ही हैं, वही श्री स्वामी जी का सूक्ष्म, गूढ़ नित्यविहार रस है।
🌸 *गौर स्याम सिंगार रस, काम प्रेम रस भोग।*
🌸 *जहाँ भूषण दूषण कवि कहैं, सो हरिदास सदा संजोग।।*
🌸 *तेई रस तू जानि और सब बात हैं।*
🌸 *हरि हाँ नित्य बिहार सुसार लह्यौ जिन घात है।।*
          _श्रीस्वामी ललितकिसोरी देव जी_
🌷 *बुरौ सिंगार बिहार में, भूषण दूषण जानि।*
🌷 *भूषण दूषण जानि यहै छबि जा छिन में सुख लाल लहै।।*
🌷 *मेरौ गहनौं और है, अंग-संग कौ सिंगार।*
🌷 *नैंननि कौं अंजन यहै, सब सुख सार बिहार।।*
            _श्रीस्वामी बिहारिन देव जी_

                                 क्रमशः

   🌹 _श्री कुंज बिहारी श्री हरिदास_🌹

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