वसुदेव , देवकी और शेष प्रभु , तृषित

वसुदेव जी ने देवकी संरक्षण के लिये निज सन्तान को कंस को दे देने को कहा क्योंकि जब तक सन्तान प्राप्त न हो उससे सम्बन्ध का पूर्वानुमान कठिन है । देवकी से सम्बन्ध हो चूका है तो वहाँ रक्षा प्रेम और धर्म दोनों से ही उचित है

7 पुत्र .. सप्त लोक की प्राप्तियों का ही त्याग है ।
अथवा कहे मूलाधार से सहस्रार तक का त्याग , जिसमें सप्तम अवस्था सत्य है । जागृति है सत्य एक बार प्रकट हो जावे तो वह स्थान भेद से भी प्रकट हो सकता है । सत्य रूप राम ही सँग है ... शेष रूप लक्ष्मण जी ने राम की सम्पूर्ण शरणागति से सेवा की है जिससे वह इस बार तादात्म्य रूप राम नाम सँग ही प्रकट हुए है । यह लक्ष्मण जी की सेवा का परिणाम है कि राम (धर्म के मर्म) ही वह भीतर है । वहीँ शेष रूप श्यामसुन्दर की सेवा और सेवक है ... सेव्य - सेवा - सेवक में द्वेत नहीँ परन्तु सेव्य के सुख के लिये एक हो कर भी , पृथक न होकर भी तदाकार वृत्ति से सेवायत होने पर वह सेवा स्वीकार्य होती है क्योंकि द्वेत का प्रभु सँग सम्बन्ध होता ही नहीँ । तृषित ।

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