मधुरं मधुरं मधुरं , तृषित

*मधुरं मधुरं मधुरं ...*

मधुरं मधुरं वपुरस्य विभो-
र्मधुरं मधुरं वदनं मधुरम् ।
मधुगन्धि मृदुस्मितमेतदहो
मधुरं मधुरं मधुरं मधुरम् ।।

इन विभु अर्थात् अति व्यापक माधुर्यमय श्रीकृष्ण की देह मधुर मधुर अर्थात् अति सुमधुर है। फिर समस्त माधुरय के निलय श्रीमुख की ओर देखकर अति आश्चर्य से सिर हिलाकर बोले- यह वदन मधुर मधुर अतितर सुमधुर है। फिर उस वदन पर विश्वविमोहक हास्यमाधुरी देखकर सीत्कार कर उठे और उस हास्य की ओर संकेत कर अंगुली हिलाकर बोले- यह मृदुहास्य भी मधुर मधुर मधुर अतितम सुमधुर है। कैसी हँसी? जिनका मधुगन्धयुक्त मुखकमल है, उस मुखकमल का मकरन्द- स्वरूप सर्वमादक है यह हँसी। विशेष रूप से उन्मादक है व्रजसुन्दरियों के लिए। पूर्वराग की अवस्था में व्रजदेवयों की उक्ति प्रस्तुत करते हैं  ।
सामने स्फुरित विभु श्रीकृष्ण के अनन्त स्वरूपों में सहज रमणीय यह वपु अति मधुर है। राधारानी के साथ विलासी रूप अति रमणीय है।
“राधासंगे यदा भाति तदा मदनमोहनः ।
अन्यथा विश्वमोहोऽपि स्वयं मदनमोहितः ।।”
‘श्रीकृष्ण जब राधारानी के साथ होते हैं, तभी मदनमोहन हैं; किन्तु श्रीराधा के साथ न होने पर विश्वमोहन होते हुए भी वे मदन द्वारा हुए रहते हैं।’ उनका वपु या अग्ङ मधुर है। इसी प्रकार पहले अग्ङ मधुरता का वर्णन कर अवयवों की माधुरी का वर्णन किया है। उनका वदन महाकान्ति विशेष के उदय होने से मधुरादपि मधुर है। दृष्टि वाग- विलास आदि से अति मधुर है। ‘अहो’ शब्द आश्चर्य के लिये प्रयोग किया है। उनकी यह मृदु हँसी महामधुर से भी अति मधुर है, उससे भी मधुर है, मानो माधुरी का एक प्रवाह है। उसका हेतु है ‘मधुगन्धिमृदुस्मितम्’ जिसमें अपूर्व मधुगन्ध या सौरभधारा है, ऐसा मन्हास्य।
श्रील चैतन्यदास कहते हैं- राधारानी के साथ विलासी श्रीकृष्ण का माधुर्य अवलोकन कर श्रीलीलाशुक ने इस श्लोक में उसका वर्णन किया है। ये विभु हैं, जो रास आदि लीलाओं में सभी प्रकार का समाधान करते हैं। उनकी देह मधुर मधुर परम आस्वाघ होते हुए भी वे श्रीराधा के साथ विलासी हैं, तभी अतितर मधुर है। फिर श्रीमती की अधरसुधा की गन्ध से युक्त मृदु हास्य मधुर मधुर मधुर मधुर- अतितम मधुर है। श्रीपाद प्रबोधानन्द सरस्वती ने भी लिखा है- राधारानी के साथ विचित्र केलिमहोत्सव में उल्लासित, श्रीमती की मान आदि लीलाओं में उनके चरणतले प्रणत श्रीकृष्ण ही रसघन मोहन मूर्ति हैं- मैं उन्हीं श्रीहरि की वन्दना करता हूँ। । जयजय श्री श्यामाश्याम ।

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