भजन सार

देखिये , सब स्थितियों का सार भजन है । वह साधना माना जाता अतः भजन (नामरसास्वदन) नही बन पाता । वही साध्य लक्ष्य है जो प्रथम प्राप्त हो गई है । वह गहरा हो । भजन को मार्ग बने यह ही कृपा । भगवत-सँग तक का सार भजन है । भजन ही रस की परमोच्च प्रसादी है । ऐसी प्रसादी जिसका भोग जीव लगाता तब हरि उस नामामृत को धारण करते । यह दुर्लभतम है । इस भजन अनुभूति से शेष सहज हुई सब स्थितियाँ-अनुभूति तो वृक्ष का दृश्य भाग है । सार भजन है । भजन का सार ही ललित रस सुधा है । तृषित ।

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